भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 218 एक महत्वपूर्ण धारा है, जो व्यक्ति को दंड से या किसी संपत्ति को समाप्ति से बचाने के उद्देश्य से लोक सेवक द्वारा गलत रिकॉर्ड तैयार करने के बारे में संज्ञान लेती है। यह धारा भारतीय समाज के विश्वास को बनाए रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह उन लोगों के खिलाफ है जो सरकारी क्षेत्र में काम करते हुए गलत तरीके से अपने लाभ के लिए जालसाजी करते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक सेवाओं को ईमानदारी से प्रदान करने वाले लोगों को संरक्षित रखना है। यह लोक सेवक को ईमानदारी से और सही तरीके से करने के लिए जिम्मेदार बनाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 218 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति लोक सेवक के नाते या लोक सेवक के पद पर कार्य करते हुए कोई अभिलेख या अन्य लेख तैयार करने का जिम्मा रखते हुए, यह जानता हुए भी किसी लेख या अभिलेख की रचना इस प्रकार करता है कि वह अशुद्ध है या किसी व्यक्ति को हानि या क्षति कारित करने के उद्देश्य से या संभाव्यतः तद्द्वारा कारित करता है, अथवा यह जानते हुए भी कि किसी व्यक्ति को वैध दंड से बचाने के उद्देश्य से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है, अथवा किसी संपत्ति को ऐसे समपहरण या अन्य भार से बचाने के उद्देश्य से या संभाव्यतः तद्द्वारा उद्देश्य से बचाने के लिए कोई कार्य करता है, जो कि दायित्व के अधीन वह संपत्ति विधि के अनुसार है, तो ऐसा कार्य करने वाला व्यक्ति भारतीय कानून के अनुसार अपराधी माना जाएगा।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 218 के अंतर्गत, व्यक्ति को दंड से या किसी संपत्ति को समपहरण से बचाने के उद्देश्य से लोक सेवक द्वारा गलत रिकॉर्ड तैयार करना या अशुद्ध अभिलेख या लेख की रचना करने जैसे अपराध में अपराधी के लिए तीन साल का कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना या दोनों प्रकार की सजा के कारावास का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
व्यक्ति को दंड से या किसी संपत्ति को समपहरण से बचाने के उद्देश्य से लोक सेवक द्वारा गलत रिकॉर्ड तैयार करना या अशुद्ध अभिलेख या लेख की रचना करना। |
दण्ड |
3 साल का कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना या दोनों |
अपराध श्रेणी |
गैर-संज्ञेय/असंज्ञेय |
जमानत |
जमानतीय |
विचारणीय |
प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 218 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-संज्ञेय/असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू नहीं की जा सकती है और अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए भी वारंट की आवश्यकता होती है। धारा 218 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों को प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 218 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध जमानतीय (Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 218 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
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Bail | |
Triable By | |