225 IPC in Hindi | धारा 225 क्या है?

225 IPC in Hindi

225 IPC in Hindi

भारतीय कानूनी प्रणाली (IPC), 1860 की धारा 225 एक महत्वपूर्ण धारा है, जो उन व्यक्तियों के खिलाफ लागू होता है जो अपराध के आरोप में पकड़े जाते हैं और उन्हें अपनी अपराधिक क्रियाओं से बचाने के लिए किसी अन्य व्यक्ति की विधि को अवैध बाधित करते हैं। इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए पकड़ा जाता है और उस अपराध के दण्ड से बचने के लिए उसकी विधि को अवैध रूप से बाधित करता है, तो उसे धारा 225 के तहत कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। धारा 225 का मुख्य उद्देश्य यह भी है कि सामाजिक न्याय को सुनिश्चित किया जाए और अपराधियों को उनके अपराधों के लिए सख्त सजा दी जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित करती है कि कानूनी प्रक्रिया में कोई भी अव्यवस्था न हो और न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष और विश्वसनीय हो।

धारा 225 क्या है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 225 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार का अपराध करने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में साशय प्रतिरोध करेगा या अवैध बाधा डालेगा, या किसी दूसरे व्यक्ति को किसी ऐसी अभिरक्षा से, जिसमें वह व्यक्ति किसी अपराध के लिए जो कि विधिपूर्वक निरुद्ध हो, साशय से छुड़ाएगा या ऐसा करने का प्रयत्न करेगा, तो ऐसा कार्य करने वाला व्यक्ति भारतीय कानून के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा। इसमें निम्नलिखित प्रावधान किये गए है।

  1. ऐसे अपराधी को छुड़ाना, जिसे आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से दंडनीय किया गया हो।
  2. ऐसे अपराधी को छुड़ाना, जिस परा पूंजी अपराध के साथ आरोप लगाया गया हो।
  3. ऐसे अपराधी को छुड़ाना, जो किसी न्यायालय के दंडादेश के अधीन या वह ऐसे दंडादेश के लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय हो।
  4. ऐसे अपराधी को छुड़ाना, मॄत्यु दंडादेश के अधीन हो, तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, उस अवधि के लिए जो दस वर्ष से अनधिक हो।

धारा 225 के अंतर्गत सजा का प्रावधान

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 225 के अंतर्गत, किसी भी व्यक्ति की विधिसम्मत आशंका के प्रतिरोध या बाधा, या, उसे वैध हिरासत से बचाने के लिए 2 साल का कारावास या आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों प्रकार की सजा का प्रावधान किया गया है, जबकि विभिन्न प्रकार के अपराधों के लिए सजा का प्रावधान निम्नलिखित है।

  1. 3 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना।
  2. 7 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना।
  3. 7 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना।
  4. आजीवन कारावास या 10 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना या जुर्माना।

अपराध

किसी भी व्यक्ति की विधिसम्मत आशंका के प्रतिरोध या बाधा, या, उसे वैध हिरासत से बचाना।

आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से दंडनीय व्यक्ति को बचाना।

पूंजी अपराध से दंडनीय अपराधी को छुड़ाना।

लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय हो।

मॄत्यु-दंड से दंडनीय अपराधी को छुड़ाना।

दण्ड

2 साल का कारावास या आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों

3 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना

7 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना

7 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना

आजीवन कारावास या 10 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना या जुर्माना

अपराध श्रेणी

संज्ञेय अपराध

संज्ञेय अपराध

संज्ञेय अपराध

संज्ञेय अपराध

संज्ञेय अपराध

जमानत

जमानतीय

गैर-जमानतीय

गैर-जमानतीय

गैर-जमानतीय

गैर-जमानतीय

विचारणीय

किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय

प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय

प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय

प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय

सत्र न्यायालय के द्वारा विचारणीय

धारा 225 की अपराध श्रेणी

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 225 के अंतर्गत, किये गए सभी एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 225 के अंतर्गत, किसी भी व्यक्ति की विधिसम्मत आशंका के प्रतिरोध या बाधा, या, उसे वैध हिरासत से बचाने जैसे मामलों पर दंडनीय अपराध के मामले किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किये जा सकता है। आजीवन कारावास से या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध के मामले किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किये जा सकते हैं, जबकि मॄत्यु-दंड से दंडनीय किया गया हो, पूंजी अपराध से दंडनीय अपराधी को छुड़ाना या किसी न्यायालय के दंडादेश के अधीन या वह ऐसे दंडादेश के लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय मामलों पर अथवा मॄत्यु दंडादेश के अधीन हो, तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, उस अवधि के लिए जो दस वर्ष से अनधिक हो ऐसे मामलों पर सत्र न्यायालय के द्वारा विचार किया जाता है।

धारा 225 के अंतर्गत जमानत का प्रावधान

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 225 के अंतर्गत, किसी भी व्यक्ति की विधिसम्मत आशंका के प्रतिरोध या बाधा, या, उसे वैध हिरासत से बचाने से सम्बन्धित मामलों में जमानत मिल सकती है, लेकिन अन्य सभी अपराध गैर-जमानतीय (Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 225 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा।

Offence Punishment Cognizance Bail Triable By
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