भारतीय दंड संहिता की धारा 406 आपराधिक न्यास भंग के लिए सजा प्रदान करती है। इसमें कहा गया है कि आपराधिक न्यास भंग के अपराधों के लिए 3 साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकती है।
आपराधिक न्यास भंग की सजा सुनिश्चित करने के लिए दो तथ्य अनिवार्य रूप से साबित किये जाने चाहिए, जो निम्न हैं:
संपत्ति का दुरुपयोग.
संपत्ति उस व्यक्ति को सौंपी जानी चाहिए जिसके खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं.
आपराधिक न्यास भंग क्या है?
आम भाषा में इसे हम 'आपराधिक विश्वासघात' भी कह सकते हैं, लेकिन कानूनी रूप से इसे आईपीसी की धारा 405 के तहत परिभाषित किया गया है।
धारा 405 के अनुसार - जब एक व्यक्ति को किसी संपत्ति की जिम्मेदारी के साथ उसका प्रभुत्व भी दिया जाता है, और वह व्यक्ति बेईमानी के उद्देश्य से संपत्ति को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करता है या संपत्ति को अपने उपयोग में परिवर्तित करता है, या वह कानून द्वारा वर्णित प्रक्रिया के खिलाफ संपत्ति का निर्वहन करता है, या किसी कानूनी अनुबंध को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है या किसी दूसरे से ऐसा करवाता है, तो हम उसे आपराधिक न्यास भंग कहेंगे।
इसके लिए सजा आईपीसी की धारा 406 के तहत प्रदान की जाती है।
बेईमानी शब्द को IPC की धारा 24 के तहत परिभाषित किया गया है जिसमें कहा गया है कि गलत इरादे से किया गया कोई कार्य जिससे गलत लाभ या हानि हो सकती है, इसे 'बेईमानी' के रूप में संदर्भित किया जा सकता है।
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IPC की धारा 23 के तहत गलत लाभ और गलत नुकसान का वर्णन किया गया है, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई लाभ या हानि गैरकानूनी साधनों द्वारा की गई है, तो लाभ पाने या खोने वाला व्यक्ति उस लाभ या हानि का भागीदार और जिम्मेदार नहीं होगा।
आईपीसी की धारा 406 को प्रयोग में लाने से पहले निम्न बिंदुओं को सुनिश्चित करना आवश्यक होता है:
उन संपत्तियों का उसी व्यक्ति द्वारा निक्षेपण होना चाहिए जिसके खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं। यहां संपत्ति में चल और अचल संपत्ति दोनों शामिल हैं।
उस व्यक्ति को बेईमानी से उन संपत्तियों का गलत इस्तेमाल करना चाहिए जो उसे सौंपी गई हैं।
IPC की धारा 405 की जरूरी शर्तों का अनुपालन होना चाहिए।
धारा 406 में वर्णित अपराध की प्रकृति: ये धारा गैर-जमानती है और साथ ही संज्ञानात्मक है। इस धारा से संबंधित मामलों को प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। यह संपत्ति के मालिक की इच्छा पर समाधेय है।
ऐतिहासिक न्यायिक-निर्णय:
रश्मि कुमार बनाम महेश कुमार भड़ा: इस मामले में माननीय अदालत ने ये कहा कि, धारा 405 और 406 में वर्णित संपत्ति 'स्त्रीधन' भी हो सकता है।
जब पत्नी अपनी संपत्ति को अपने ससुराल वालों या अपने पति और पति या परिवार के किसी सदस्य के नाम हस्तांतरित करती है, और बाद में उस स्त्री की मर्जी के खिलाफ या बेईमानी से उस संपत्ति का दुरुपयोग किया जाता है, तो उसे भी हम 'आपराधिक न्यास भंग' की श्रेणी में रख सकते हैं।
पहले यह भ्रम था कि 'स्त्रीधन' को इस धारा के तहत रखना कदाचित उचित नहीं है, क्योंकि मामला परिवारों के बीच है और आमतौर पर संपत्ति पति को ही सौंपी जाती है न की किसी अजनबी को। लेकिन इस मामले में अदालत ने कहा कि पति या परिवार के सदस्यों को अपवाद नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि यहां भी धारा 405 का सबसे महत्वपूर्ण घटक और शर्त पूरा किया जा रहा है जो कि संपत्ति का संपत्ति का सौंपना है, और इसलिए दुरुपयोग के मामलों में, इस धारा के तहत पति या उसके परिवार के सदस्य के खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है।
रामास्वामी नादर बनाम मद्रास राज्य (AIR 1958 SC 56) : इस मामले में, सम्मानित शीर्ष अदालत ने कहा कि, आपराधिक न्यास भंग के अपराध के लिए सबसे मुख्य और आवश्यक तत्व यह साबित करना है कि, संपत्ति को उसे ही सौंपा गया था, जिसके खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं।
आईपीसी की धारा 406 के तहत अपने मामले को दर्ज / बचाव कैसे करें?
चूंकि, धारा 405 और 406 क तहत अपराध प्रकृति में संज्ञेय है, इसलिए, पीड़ित स्थानीय पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज कर सकता है। इस संबंध में पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है। फिर जांच-पड़ताल के बाद, प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के सामने चार्जशीट दाखिल करनी होगी, जिसके बाद अदालती-कार्रवाई का दौर आरम्भ होता है।
चूंकि अपराध प्रकृति में गैर-जमानती है, इसलिए अदालत के विवेक पर ही जमानत दी जा सकती है। यहां आरोपी को जमानत का कोई अधिकार नहीं है।
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इसलिए, जमानत प्राप्त करने के लिए माननीय न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर किया जा सकता है, और उसके बाद अदालत के विवेक पर जमानत दी जा सकती है जिसके लिए अभियुक्त को जमानत बांड का भुगतान करना होगा।
इस मामले में अग्रिम जमानत की अर्जी भी दायर की जा सकती है। अग्रिम जमानत सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर की जाती है।
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