आजकल जबरन वसूली के कई मामले देखने को मिलते हैं। इस तरह की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए, भारतीय कानून ने विभिन्न धाराएं बनाई हैं, इनमें से एक धारा है, आईपीसी की धारा 389। यह अपराध गंभीर होता है क्योंकि इसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता और सुरक्षा को खतरा होता है। इसके तहत, जब किसी व्यक्ति को अपराधी माना जाता है, तो उसे गैरकानूनी रूप से दबाव डालने का प्रयास किया जाता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 389 का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में लोगों को जबरन वसूली और अपराध के खिलाफ जागरूक करना है, ताकि वह इससे बच सकें और यदि उनके साथ भी ऐसा कोई अन्याय होता है, तो उसके खिलाफ आवाज उठा सके। इस आर्टिकल में, हम जानेंगे कि जबरन वसूली की कोशिश में किसी व्यक्ति को अपराध का आरोप लगाना कैसे एक गंभीर अपराध बन सकता है और इसके लिए भारतीय कानून में क्या सजा है।
यदि कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति से जबरन वसूली करने के लिए किसी व्यक्ति को अपराध का आरोप लगाने के भय दिखाता है या ऐसा करने का प्रयत्न करता है, तो वह व्यक्ति भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 389 के अंतर्गत दोषी माना जायेगा।
सरल शब्दों में कहें तो यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाकर उससे उसकी धन, संपत्ति या सोना, चांदी, या कोई अन्य कोई मूल्यवान वस्तु हथियाने का प्रयास करता है, तो उस व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 389 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।
धारा 389 के तहत दर्ज किए गए मामलों में अपराधी के खिलाफ प्रमाण प्रस्तुत करना आवश्यक होता है। इन प्रमाणों में गवाह, कोई विवरण या अन्य साक्षात्कार जैसे प्रमाण शामिल है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 389 के अंतर्गत, गंभीर आरोप लगाने का डर दिखाकर किसी व्यक्ति से उसकी सम्पत्ति, धन या कोई भी वस्तु जबरदस्ती छीनने जैसे अपराधों के लिए भी भारतीय कानून प्रणाली में एक निश्चित सजा का प्रावधान है। IPC में इस तरह के अपराधों के लिए किसी एक अवधि के लिए कठिन कारावास की सजा जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और इसके साथ ही आर्थिक दंड के रूप में जुर्माने का प्रावधान है।
अपराध |
जबरन वसूली करने के लिए किसी व्यक्ति को अपराध का आरोप लगाने के भय में डालना |
दंड |
10 साल के कठोर कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं) |
जमानत |
जमानतीय |
विचारणीय |
प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 389 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 389 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों में प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय होते है। इस प्रकार के अपराधों में किसी प्रकार का समझौता भी नहीं किया जाता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 389 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध जमानतीय (Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 389 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
Cognizance | |
Bail | |
Triable By | |