भारतीय दंड संहिता एक प्रमुख अधिनियम है, जो कि आपराधिक मामलों में न्याय प्रदान करने हेतु पारित किया गया है।
इस अधिनियम का लक्ष्य भारत को एक समग्र सुधारात्मक प्रावधानों का एक समूह देना है। हालांकि ये संहिता आंग्ल-शासन द्वारा ही 1860 ई० में लाया गया था, इस कारण से संहिता में कई अपराध शामिल नहीं थे और यह अनुमान योग्य था कि कुछ अपराधों को कोड के संबंध में अभी टाला जा सकता है, जो कि बाद में सामाजिक परिवर्तनों के साथ साथ परिवर्तित हो सकते हैं।
इस अधिनियम के द्वारा "यौन अपराध" को 'जघन्य अपराधों' की श्रेणी में रखा जाता है। इन्हें क्रूर और अमानवीय माना जाता है क्योंकि ऐसे अपराध पीड़ित की शारीरिक, मानसिक और आत्मिक समृद्धि को नुकसान पहुंचाते हैं।
इसी श्रेणी में ऐसे अपराध भी आते हैं जिसमें बच्चों को यौन-शोषण के लिए उकसाया जाता है। इस तरह के अपराधों का शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत ही दुर्धर्ष परिणाम होता है जैसे भविष्य में गर्भधारण सम्बन्धी कठिनाई, स्थायी बीमारी, गहन अवसाद आदि। इसलिए भारतीय दंड संहिता ने ऐसे अपराधों के लिए विभिन्न नियम और दंड प्रदान किए हैं, जैसे धारा 375, धारा 376, धारा 376A - 376D, जो कि यौन-दुष्कर्म से संबंधित प्रावधानों और उसकी सजा के बारे में बात करती है।
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धारा 376 बी क्या है?
आईपीसी की धारा 375 बलात्कार की अवधारणा और प्रासंगिक प्रावधानों के बारे में जानकारी के साथ उसके सजा को भी प्रदान करता है। धारा 376 B ऐसे अपराधों पर प्रकाश डालती है जिसमें अलगाव के दौरान, एक पति द्वारा अपनी पत्नी के इच्छा के विरुद्ध शारीरिक-शोषण किया जाता है।
आईपीसी के अनुसार, धारा 376 बी को निम्नानुसार पढ़ा जाता है: जो कोई भी स्वतंत्र रूप से अलग रह रही या अलगाव की घोषणा के उपरांत, अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाता है, वो धारा 376 बी के प्रावधानों के अंतर्गत दोषी मन जाएगा, जिसकी सजा 2 वर्ष से लेकर 7 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
तो मूल रूप से, धारा 376 बी पति या पत्नी के किसी भी तरह के विभाजन या अलगाव की अवधि के दौरान हुए संभोग के विषय में बात करती है। उदाहरण के लिए:
एक जोड़े द्वारा तलाक के लिए एक मामला दायर किया गया है और अलगाव की अवधि के दौरान, पति का अपनी पत्नी के साथ संभोग होता है। पत्नी द्वारा शिकायत करने पर, पति को दोषी माना जाएगा।
धारा 376B के लागू होने के किए निम्न शर्तों की अनिवार्यता होती है:
इस तरह का संभोग किसी कानूनी रूप से मान्य पति-पत्नी के बीच होना चाहिए।
इस सम्भोग पत्नी की सहमति के बगैर होना चाहिए।
ऐसी घटनाएं पति-पत्नी के अलगाव की अवधि के दौरान ही होनी चाहिए।
इस खंड में, "संभोग" का अर्थ धारा 375 के खंड (ए) से (डी) में उल्लिखित कोई भी कृत्य होगा जो कि निम्नानुसार हैं:
अपने लिंग को किसी भी हद तक, एक महिला के मुंह, योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करना या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए कहना; या
किसी भी हद तक, किसी भी वस्तु या लिंग के अलावा शरीर का कोई एक हिस्सा, एक महिला के मूत्रमार्ग या गुदा या योनि में प्रवेश करना या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए कहना; या
एक महिला के शरीर के किसी भी हिस्से को इस तरह से काबू में करना जिससे कि उस महिला के मूत्रमार्ग, योनि, गुदा या शरीर के किसी भी भाग में उसके शरीर का किसी हिस्से को प्रवेश कराना मुमकिन हो पाए; या
मुंह को किसी महिला के मूत्रमार्ग, योनि या गुदा, पर लगाना या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए कहना।
क्या IPC 376 B एक जमानती अपराध है?
हां, धारा 376 बी एक जमानती, पर संज्ञेय अपराध है। हालांकि, इस तरह का कृत्य तभी संज्ञेय है, जब किसी महिला द्वारा इसकी शिकायत की जाती है।
ऐसा अपराध सत्र न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में है।
धारा 376 बी के तहत क्या सजा है?
यदि कोई व्यक्ति धारा 376 बी के तहत इस तरह के अपराध का दोषी पाया जाता है, तो उसे एक ऐसी कारावास की सजा दी जाएगी जो 2 साल से कम नहीं होगी, लेकिन 7 साल से अधिक भी नहीं होगी। इसके साथ इसमें जुर्माना का भी प्रावधान किया गया है।
धारा 376 बी के तहत अपराध क्या है?
यह प्रावधान विशेषकर महिलाओं की सहमति के महत्व को प्रदर्शित करने वाले विशेषाधिकारों का अभ्यास करने के दृष्टिकोण से बनाया गया था। 'सहमति' इस खंड में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस प्रावधान के तहत महिलाओं के गौरव की रक्षा और उन्हें अपने ही जीवनसाथी के खिलाफ अधिकार दिया गया है, जो उसकी मर्जी के बिना शारीरिक या यौन संबंध बनाने का प्रयास कर रहा है। इस संबंध में दोषी दो साल की कैद के साथ आरोपित किया जाता है, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
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धारा 376 बी के तहत प्रसिद्ध निर्णय क्या है?
ओमकर प्रसाद वर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य: इस मामले में ओमकार प्रसाद एक अपीलकर्ता थे, जिन पर एक छात्रा के यौन-शोषण के अपराध का आरोप लगाया गया था। उन पर धारा 376 बी के तहत आरोप लगाए गए। अदालत ने कहा कि किसी को भी धारा 376 बी के तहत दोषी ठहराने के लिए दोषी को अभिभावक की संरक्षकता के तहत होना चाहिए। इस मामले के तहत, यह देखा गया कि आरोपी ने छात्र के साथ यौन संबंध बनाए या नहीं। अदालत ने ये स्पष्ट किया कि एक शिक्षक सामुदायिक कार्यकर्ता है, हालांकि सभी छात्र अनुदेशकों के अधिकार में नहीं हैं। अदालत ने अतिरिक्त रूप से ये स्पष्ट किया कि यदि एक शिक्षक और छात्र प्रेमी बन जाते हैं और शिक्षक ने अपने पद का दुरुपयोग नहीं किया है, तो इस संबंध में धारा 376 बिल्कुल भी लागू नहीं होगा।
चाँद मोहन सम्मदर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2011): इस मामले में सर्वोच्च अदालत द्वारा यह विचार रखा गया कि संभोग करने की सहमति, एक स्वतंत्र प्रकृति की होनी चाहिए। अगर किसी भी तरह से सहमति स्वतंत्र या दृढ़ नहीं है, तो इसे धारा 376 बी के तहत बलात्कार और दंडनीय माना जाएगा। इस मामले में, अगर सहमति पति या पत्नी की अस्वस्थता के तहत प्राप्त की जाती है, तो इसे स्वतंत्र सहमति नहीं माना जाएगा और इसलिए धारा 376 बी के तहत दंडनीय है।
निष्कर्ष: धारा 376 बी भारतीय दंड संहिता में अधिनियमित एक ऐसी धारा है जो संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार 'जीने का अधिकार' की बात करती है। जीवनसाथी को जो अधिकार दिए जाते हैं, वे पति-पत्नी के अलगाव या तलाक के बाद भंग हो जाते हैं। तो, इस कारण से सहमति का कारक महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिए, यह खंड इस बारे में बात करता है कि अगर किसी व्यक्ति को अलगाव अवधि के दौरान अपने पति या पत्नी के साथ यौन संबंध स्थापित करना है, तो उसे अपनी सहमति प्राप्त करनी होगी, अन्यथा यह आईपीसी या भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध है।