313 IPC in Hindi | धारा 313 क्या है?

313 IPC in Hindi

313 IPC in Hindi

भारतीय समाज में महिलाओं का सम्मान और सुरक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है, और इसी दृष्टि से विभिन्न कानूनी धाराएं बनाई गई हैं जो महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का प्रयास करती हैं। भारतीय कानूनी की भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 313 भी इनमें से एक है जो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाई गई है।

इस प्रकार के अपराध केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामाजिक स्तर पर भी बुरा प्रभाव डालते हैं और समाज की सुरक्षा और समानता को खतरे में डालते हैं, इसलिए इस प्रकार के अपराध को रोकने के लिए लोगो को इस धारा के बारे में जानकारी होना आवश्यक है।

धारा 313 क्या है?

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 313 के अनुसार, यदि कोई किसी स्त्री की सहमति के बिना, चाहे वह स्त्री स्पन्दनगर्भा की स्तिथि हो अथवा नहीं, उसका गर्भपात करवाता है या ऐसा करने का प्रयत्न करता है, तो वह व्यक्ति भारतीय कानून के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।

धारा 313 के अंतर्गत सजा का प्रावधान

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 313 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की उसकी सहमति के बिना उसका गर्भपात कराता है या ऐसा करने का प्रयत्न करता है, तो धारा 313 में उस अपराधी के लिए आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने का भी प्रावधान है।

अपराध

महिला का उसकी सहमति के बिना गर्भपात कराना

दंड

आजीवन कारावास या 10 साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना

अपराध श्रेणी

संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं)

जमानत

गैर-जमानतीय

विचारणीय

सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय

धारा 313 की अपराध श्रेणी

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 313 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 313 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामले में सत्र न्यायालय के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय होते है। इस प्रकार के अपराधों में किसी प्रकार का समझौता भी नहीं किया जाता है।

धारा 313 के अंतर्गत जमानत का प्रावधान

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 313 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-जमानतीय (Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 313 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं पाएगा।

धारा 313 के अंतर्गत संशोधन

2009 में इस धारा में एक संशोधन के माध्यम से सीआरपीसी की धारा 313(5) जोड़ी गई, जो इस बात पर विचार करती है कि न्यायालय अभियुक्त से पूछे जाने वाले प्रश्नों को तैयार करने में अभियोजक और बचाव पक्ष के वकील की सहायता ले सकता है और साथ ही अभियुक्त द्वारा प्रावधान के अनुपालन करते हुए लिखित बयान दर्ज करने की अनुमति भी दे सकता है। इस संशोधन के का कारण त्वरित ट्रायल सुनिश्चित करना था।

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