सामान्य भाषा में लापरवाही शब्द का अर्थ 'असावधानी' है। वहीं क़ानूनी भाषा में इसे कानून द्वारा प्रदत दायित्वों का उल्लंघन या उपेक्षा भी कहते हैं।
भारतीय दंड संहिता, 1860 भारत के सबसे प्रतिष्ठित और महत्वपूर्ण कानूनों में से एक है। इस कानून में कई जघन्य और गैरकानूनी अपराधों के साथ साथ, उनके लिए दंड को भी परिभाषित किया गया है। यह कानून आम आदमी के साथ-साथ लोक सेवकों या सरकारी अधिकारियों जैसे पुलिस, अफसर आदि पर भी लागू होता है।
इस कानून के प्रावधानों के अंतर्गत 'लापरवाही' एक दंडनीय अपराध है जिसे किसी भी व्यक्ति, लोक सेवक या आम लोगों को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। लापरवाही की पूरी संकल्पना के निर्धारण में अदालतें भारतीय दंड संहिता की धारा 129 पर निर्भर है। धारा 129 वो प्रावधान है जिसके तहत पुलिस या सरकारी कर्मचारियों को भी उनके लापरवाह-कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है ।
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क्या है आईपीसी की धारा 129?
धारा 129 में कहा गया है कि " जो कोई लोक सेवक होते हुए और किसी राजकैदी या युद्धकैदी की अभिरक्षा रखते हुए उपेक्षा से ऐसे कैदी का किसी ऐसे परिरोध स्थान से जिसमें ऐसा कैदी परिरुद्ध है, निकल भागना सहन करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए सादा कारावास जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, से दण्डित किया जाएगा, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा। ”
आम भाषा में यह धारा कहती है कि जब कोई राज्य-कैदी या युद्ध-कैदी किसी जेल में, किसी पुलिस या किसी अफसर की हिरासत में होता है, और वह कैदी जेल या उस स्थान से उस पुलिस या अफ़सर की लापरवाही के कारण भाग जाता है, तो इस परिस्थिति में जिम्मेदार पुलिस या अफसर आईपीसी की धारा 129 के तहत दोषी माना जाएगा।
क्या आईपीसी 129 जमानत योग्य है?
कानूनन, जमानत का मतलब मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे एक आरोपी की, अदालत द्वारा कुछ अनिवार्य शर्तों पर अस्थायी रिहाई होता है। धारा 129 के अंतर्गत लापरवाही का यह मामला अभी भी जमानती माना जाता है और इस अपराध के लिए जमानत दी जा सकती है ।
आईपीसी 129 मामले में क्या है सजा?
आमतौर पर इस तरह की 'लापरवाही' न केवल लोगों के लिए, बल्कि पूरे समाज के साथ साथ, पूरे देश की सुरक्षा के लिए भी अवांछित खतरा पैदा कर सकती है । इसीलिए, इस तरह की लापरवाही करने वाले सरकारी कर्मचारियों को अदालत द्वारा 3 साल के कारावास या जुर्माने या दोनों से भी दंडित किया जा सकता है।
आईपीसी 129 संज्ञेय-अपराध या गैर संज्ञेय-अपराध है?
संज्ञेय अपराध को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित किया जाता है जहां एक पुलिस अधिकारी बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है । गिरफ्तारी होने के बाद आरोपी को 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए ।
धारा 129 के प्रावधानों के अंतर्गत, 'सरकारी कर्मचारियों द्वारा लापरवाही' एक संज्ञेय-अपराध है और ऐसे किसी लापरवाह अधिकारी या लोक सेवक को अदालत से वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है, क्योंकि वह अपने कर्तव्य को निष्पादित करते समय असावधान था और लापरवाही कर रहा था, जिसके परिणामस्वरूप कैदी फरार हुआ।
आईपीसी 129 अपराध के लिए अपना मामला कैसे दर्ज/बचाव करें?
जैसा कि ऊपर कहा गया है, धारा 129 के लागू होने के लिए 'कैदी के भागने में लोक सेवक की लापरवाही की भूमिका' की आवश्यकता होती है । यह एक तरह का पूर्व-शर्त है जिसके अनुपालन के उपरांत ही धारा 129 लागू हो सकता है।
धारा 129 के अंदर दिए गए प्रावधान, इसके अनुपालन हेतु एक छोटी सूची देता है जिसमें निम्न शर्तें बताई गई हैं :
अपराध के समय आरोपी को लोक सेवक होना चाहिए।
ऐसे कैदी को आरोपी लोक सेवक की कस्टडी या अभिरक्षा में होना चाहिए।
कैदी को अपने निर्दिष्ट सीमित स्थान (जेल) से भागना चाहिए।
इस तरह का पलायन, आरोपी लोक सेवक की लापरवाही के कारण होना चाहिए।
आईपीसी धारा 129 के संबंध में अदालत द्वारा दिए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय:
श्री मुकुल दत्ता बनाम असम राज्य, 2014: इस वाद के तथ्य के अनुसार, दोपहर करीब 12.30 बजे सेंट्रल जेल, डिब्रूगढ़ के तीन कैदियों को उनके इलाज के लिए एएमसीएच, डिब्रूगढ़ ले जाया गया । उनके इलाज के बाद कांस्टेबल दीना बोरा ने नायक अतुल चेतिया को सूचित किया कि आरोपी मुकुल दत्ता अपनी कस्टडी से दूर भाग गया है । सेंट्रल जेल डिब्रूगढ़ के अधीक्षक ने मामले की जानकारी डिब्रूगढ़ की अदालत को दी । बाद में आरोपी मुकुल दत्ता को गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया । आरोपी दीना बोरा को जमानत पर रिहा कर दिया गया । जांच पूरी होने पर पुलिस ने आरोपी मुकुल दत्ता के खिलाफ धारा 224 आईपीसी और आरोपी कांस्टेबल के खिलाफ धारा 120 बी, 109, 129 आईपीसी 169 के तहत मामला दर्ज किया ।
अभियुक्त की उपस्थिति पर परीक्षण आगे बढ़ा और परीक्षण के समापन पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट डिब्रूगढ़ ने श्री मुकुल को धारा 224, आईपीसी के तहत दोषी ठहराया और उसे सजा सुनाई और संदेह के लाभ पर अन्य आरोपी को बरी कर दिया ।
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बाबू राम (एस /ओ) कालू राम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2014: तथ्यानुसार, पार्टियों की दलील है कि संबंधित समय पर याचिकाकर्ता पुलिस लाइन, सहारनपुर में तैनात थे। उन्हें 27.4.2001 को एक कुख्यात अंडर-ट्रायल आरोपी राशिद को जिला जेल, सहारनपुर से तीस हजारी कोर्ट, दिल्ली ले जाने का जिम्मा सौंपा गया था। देवबंद के पास, 28.4.2001 की रात के करीब 12.30 बजे लौटते समय, उक्त आरोपियों ने रनिंग ट्रेन से हथकड़ी और रस्सी के सहारे एक ऐसी जगह से छलांग लगाई जो देवबंद से 10-15 किमी दूर थी। याचिकाकर्ता की हिरासत से उक्त अभियुक्तों का भागना विवादित नहीं है। याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत जवाब में उन्होंने स्वीकार किया कि उक्त आरोपी उनकी हिरासत से भाग गए।
मामले का निर्णय याचिकाकर्ताओं को उनके घोर लापरवाही के लिए दंडित कर किया गया ।
निष्कर्ष: सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता पूरे देश के साथ-साथ प्रत्येक नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की है । इस तरह की लापरवाही अक्सर देश की सीमाओं पर और देश के अंदर बिन बुलाए खतरे का कारण बन सकती है ।
इसीलिए धारा 129 ऐसे प्रावधानों को समाहित करता है जिससे लापरवाही के कृत्यों को हतोत्साहित किया जा सके और लोक सेवक अपने दायित्वों का ज्यादा सावधानीपूर्वक निष्पादन करें। धारा 129 नागरिकों को यह विश्वास दिलाता है कि कानून की नजर में प्रत्येक व्यक्ति एक समान है और कानून के उल्लंघन करने पर हर एक व्यक्ति को न्यायोचित सजा मिलेगी।