भारतीय संविधान ने नागरिकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के साथ संरक्षित किया है। इसी के साथ, भारतीय दंड संहिता (IPC) में भी नागरिकों के शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रावधान किया गया है। यह अधिकार धारा 102 में स्थापित है, जो एक व्यक्ति को अपने शरीर की सुरक्षा के लिए अधिकार प्रदान करता है। इस धारा के अनुसार, एक व्यक्ति को अपने या किसी अन्य व्यक्ति की रक्षा के लिए आवश्यक साधनों का उपयोग करने के अधिकार की स्थितियों को स्पष्ट किया गया है। यह धारा निम्नलिखित बातों पर जोर देती है और इसके महत्व को समझना आवश्यक है। यह धारा 102 भारतीय समाज में शारीरिक और मानसिक सुरक्षा के अधिकारों की गारंटी प्रदान करती है। यह उपाय उन व्यक्तियों को सामाजिक न्याय और सुरक्षा के माध्यम से सशक्त करता है जो किसी भी प्रकार के अपमान या अत्याचार का शिकार होते हैं। धारा 102 की महत्वपूर्ण भूमिका को समझते हुए, हमें इसे समाज में अधिक जागरूकता और प्रचारित करने की आवश्यकता है ताकि हम सभी एक सुरक्षित समाज का निर्माण कर सकें।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 102 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति पर अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की आशंका पैदा होती है या ऐसा होने की आशंका रहती है, तो उसी उसी क्षण से उसके लिए शरीर की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार प्रारंभ हो जाता है, चाहे वह अपराध किया भी नहीं गया हो और वह अधिकार तब तक बना रहता है जब तक शरीर पर ऐसे की जानलेवा संकट की आशंका बनी रहती है।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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