भारतीय दण्ड संहिता (IPC), 1860 की धारा 425 भारतीय कानून प्रणाली में रिष्टि/कुचेष्टा को परिभाषित करती है। यह धारा उन स्थितियों को स्पष्ठ करती है, जिन्हें कि रिष्टि/कुचेष्टा के मामले के अंतर्गत शामिल किया जाता है। हालांकि इस धारा में ऐसे मामलों के लिए किसी प्रकार की सजा का उल्लेख देखने को नहीं मिलता है। रिष्टि/कुचेष्टा समाज में अशांति और बदले की धारणा को बढ़ावा देती है, जो कि समाज के लिए एक असुरक्षित माहौल पैदा करती है। इस प्रकार के मामलों से बचने के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि किन-किन स्थितियों में रिष्टि/कुचेष्टा का होना संभव है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 425 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति इस आशय से, या यह जानते हुए, किसी व्यक्ति को या सामान्य जन को नुकसान या सदोष हानि कारित करे अथवा किसी व्यक्ति की सम्पत्ति का नाश करे या फिर किसी व्यक्ति की सम्पत्ति में या उसकी स्थिति में कोई ऐसी तब्दीली करे, जिससे उस सम्पत्ति का मूल्य या उपयोगिता नष्ट या कम हो जाए या फिर उस सम्पत्ति पर किसी प्रकार का क्षतिकारक प्रभाव पड़े, तो ऐसा कार्य भारतीय कानून प्रणाली में रिष्टि/कुचेष्टा कहलाता है।
स्पष्टीकरण 1 - रिष्टि/कुचेष्टा के अपराध के मामलों में केवल वह ही मामले शामिल नही किए जाते है, जिसमें कोई अपराधी क्षतिग्रस्त या नष्ट सम्पत्ति के स्वामी को हानि या नुकसान पंहुचाने के उद्देश्य से कोई काम करे, बल्कि इसमें वह मामले भी शामिल होते हैं, कि जिनमें व्यक्ति यह जानते हुए भी कि उसके द्वारा किए गए कार्य से किसी व्यक्ति को सदोष हानि या नुकसान होगा, फिर भी कोई ऐसा कार्य करता हो, जिसमें वह किसी सम्पत्ति को क्षति पहुंचाए चाहे वह सम्पत्ति उस व्यक्ति की हो अथवा नहीं।
स्पष्टीकरण 2 - किसी ऐसी सम्पत्ति पर प्रभाव डालने वाला कार्य करना, जो उस कार्य को करने वाले व्यक्ति की हो, या संयुक्त रूप से उस व्यक्ति की अथवा अन्य व्यक्तियों की हो, रिष्टि/कुचेष्टा कहलाएगा।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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