भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 390 लूट के अपराध को परिभाषित करती है। यह धारा चोरी, लूट और जबरन वसूली की स्थितियों को स्पष्ट करती है। किसी व्यक्ति की संपत्ति को हथियाना एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए अपराधी को कठोर दण्ड दिया जाता है। हालाँकि धारा 390 में इस अपराध के बारे में दण्ड का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। इस तरह के अपराध समाज में असुरक्षा और अस्थिरता की भावना बढ़ावा देते हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 390 के अनुसार हर तरह के लूट में चोरी या जबरन वसूली शामिल होती है। यह धारा स्पष्ट करती है कि लूट में चोरी कब है और जबरन वसूली कब है।
चोरी कब लूट है - यदि चोरी करते समय कोई अपराधी चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने या ले जाने का प्रयत्न करने के उद्देश्य से अपराधी स्वेच्छया किसी व्यक्ति की मॄत्यु, क्षति या उसका सदोष अवरोध करता है या फिर तत्काल मॄत्यु का, तत्काल क्षति अथवा तत्काल सदोष अवरोध के लिए भय कारित करता है या ऐसा करने का प्रयत्न करता है, तो इस प्रकार की चोरी को लूट कहा जाता है।
जबरन वसूली कब लूट है - यदि कोई अपराधी जबरन वसूली करते समय किसी व्यक्ति को स्वयं की या किसी अन्य व्यक्ति की तत्काल मॄत्यु, तत्काल क्षति या फिर तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालकर पीड़ित से जबरन वसूली करता है या उसे परिदत्त करने के लिए उत्प्रेरित करता है, तो इस प्रकार की गई जबरन वसूली को लूट कहा जाता है।
(नोट- अगर लूट सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच राजमार्ग पर की जाए तो उसके लिए कारावास की सजा की चौदह वर्ष तक की अवधि तक बढ़ाई जा सकती है।)
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 390 केवल लूट के अपराधों को परिभाषित करती है, लेकिन इसके दण्ड का उल्लेख धारा 392 में देखने को मिलता है। धारा 392 के अंतर्गत, लूट करने जैसे अपराधों के लिए दण्ड के रूप में 10 साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
लूटना |
दण्ड |
10 साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय (समझौता करने योग्य नहीं) |
जमानत |
गैर-जमानतीय |
विचारणीय |
सत्र न्यायालय के द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 390 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 390 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल सत्र न्यायालय के द्वारा विचारणीय के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 390 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-जमानतीय (Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 390 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा।
स्वयं को सशक्त बनाएं: आईपीसी 363 सीखेंOffence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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