भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 371 आभ्यासिक दासों के व्यवहार से सम्बंधित है। भारतीय दंड संहिता एक ऐसा उपकरण है जो समाज में न्याय और कानून की प्रणाली को स्थापित करने का कार्य करता है। यह एक विशेष धारा है जो आभ्यासिक दासों के खिलाफ उपयोग किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि यह किसी भी दास के साथ ऐसे व्यवहार न हो, जिससे उसकी स्वतंत्रता और अधिकारों में कोई हानि पहुंचे। यह धारा दासों के साथ हो रहे व्यवहारिक सामाजिक अन्याय के लिए एक अहम भूमिका निभाती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 371 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति का उस व्यक्ति की सहमति के बिना या फिर किसी ऐसे व्यक्ति की ओर से सहमति देने के लिए वैध रूप से प्राधिकॄत व्यक्ति की सहमति के बिना, भारत की सीमाओं से परे कहीं दूसरे स्थान पर लेकर जाता है, तो इसे उस व्यक्ति का भारत में से व्यपहरण करना कहलाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 371 के अंतर्गत आभ्यासिक दासों का व्यवहार करने के अपराध हेतु आजीवन कारावास या दस वर्ष तक कारावास और आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने के दण्ड का प्रावधान है।
अपराध |
आभ्यासिक दासों का व्यवहार करना |
दण्ड |
आजीवन कारावास या दस वर्ष तक कारावास और आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय (समझौता सम्भव नहीं) |
जमानत |
गैर-जमानतीय |
विचारणीय |
सत्र न्यायालय के समक्ष |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 371 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 371 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल सत्र न्यायालय के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 371 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-जमानतीय (Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 371 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Bail | |
Triable By | |