भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 363 व्यपहरण से सम्बंधित अपराधों के बारे में संज्ञान लेती है। बच्चों या किशोरों के साथ किया गया व्यपहरण के अपराध को भारतीय कानून प्रणाली में एक गंभीर अपराध माना गया है। इस धारा के अंतर्गत, ऐसे अपराधों के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 363 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी क़ानूनी अभिभावक की संरक्षता से किसी का अपहरण करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है तो ऐसा कार्य करने वाले व्यक्ति को भी भारतीय कानून के अंतर्गत अपराधी माना जाता है।
(नोट - भारतीय कानून प्रणाली के अनुसार नाबालिग बच्चों (जिनकी आयु 18 वर्ष से कम हो) व विकृतचित्त व्यक्ति (मानसिक अयोग्यता से पीडित व्यक्ति) को अगवा करना व्यपहरण कहलाता है।)
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363 के अंतर्गत, व्यपहरण करने जैसे अपराधों के लिए सजा के रूप में 7 साल का कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने की सजाओं का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
व्यपहरण करना |
दण्ड |
7 साल का कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय (समझौता करने योग्य नहीं) |
जमानत |
जमानतीय |
विचारणीय |
प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 363 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध जमानतीय (Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 363 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
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