भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 362 अपहरण के अपराधों को परिभाषित करती है। अपहरण, एक घातक अपराध है जो समाज में व्यक्तिगत सुरक्षा को हानि पहुंचाता है और समाज में आतंक और असुरक्षा की भावना को फैलाता है। यह धारा अपहरण की विभिन्न प्रकार की स्थितियों को स्पष्ट करती है, जैसे कि बच्चों का अपहरण, मृत्यु करने हेतु अपरहण, विवाहित महिलाओं का अपहरण, फिरौती के लिए अपहरण आदि। हालाँकि इस धारा में इस अपराध के बारे में किसी निचश्चित सजा का निर्धारण नहीं किया गया है। इस प्रकार के अपराध न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि समाजिक और आर्थिक स्तर पर भी अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 362 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को बलपूर्वक उकसावे, छल के द्वारा किसी स्थान से जाने के लिए बाध्य करता है, या उत्प्रेरित करता है, तो उसे उस व्यक्ति का अपहरण करना कहा जाता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 362 के अंतर्गत, अपहरण करने के लिए कोई एक सजा निर्धारित नहीं की गई है, इस अपराध के लिए सजा का निर्धारण अपराधी की अपराध करने की मंशा देखकर किया जाता है। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 362 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। इस तरह के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 362 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-जमानतीय (Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 362 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा।
आईपीसी 318 को अनलॉक करें: कानूनीताओं को नेविगेट करेंOffence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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