आधुनिक समाज में महिलाओं को समर्थन और सुरक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन कई बार दृश्यरतिकता और छेड़छाड़ की घटनाओं का सामना करना पड़ता है। इस परिस्थिति का सामना करते हुए, भारतीय कानून में विभिन्न धाराएं हैं जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाई गई हैं। भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 354C इसमें से एक है।
धारा 354C के तहत, दृश्यरतिकता के अपराधों को रोकने के लिए कई प्रतिबंध लगाए गए हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया है कि इस प्रकार की घटनाएं होती नहीं हैं और व्यक्तिगत गोपनीयता की सुरक्षा की जाती है। धारा 354C के तहत इस प्रकार के अपराध करने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाती है और इस प्रकार की घटनाओं को रोका जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति प्राइवेट कार्य कर रही स्त्री को उन परिस्थितियों में एकटक देखेगा या का फोटो या वीडियो बनाएगा अथवा प्रसारित करने का अपराध करेगा, जहां वह ऐसा सोचती है कि उसे कोई भी देख नहीं रहा होगा, भारतीय दंड संहिता की धारा 354c/354ग के अंतर्गत अपराधी माना जाता है। ऐसे अपराध को दृश्यरतिकता का अपराध कहा जाता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354c/354ग के अंतर्गत पाए जाने वाले अपराधों के लिए भारतीय कानून प्रणाली में एक निश्चित सजा का प्रावधान है। IPC में यदि कोई व्यक्ति पहली बार दोषी पाया जाता है, तो अपराधी के लिए 1 वर्ष से 3 वर्ष तक की अवधि के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माने का प्रावधान है, जबकि दूसरी बार या उसके बाद ऐसे अपराध में दोषी पाए जाने पर 3 वर्ष से 7 वर्ष तक की अवधि के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
दृश्यरतिकता के अपराध में पहली बार दोषी पाए जाने के लिए |
दृश्यरतिकता के अपराध में दूसरी बार या उसके आगे दोबारा दोषी पाए जाने के लिए |
दंड |
1 वर्ष से 3 वर्ष तक की अवधि के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना |
3 वर्ष से 7 वर्ष तक की अवधि के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं) |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं) |
जमानत |
जमानतीय |
गैर-जमानतीय |
विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354c/354ग के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 354c के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354c/354ग के अंतर्गत किए गए अपराधों में यदि कोई व्यक्ति पहली बार गिरफ्तार किया जाता है, तो वह जमानत पर बाहर आ सकता है, लेकिन अगर वही अपराधी दूसरी बार या इसके बाद दोषी पाया जाता है, तो फिर वह अपराध गैर-जमानतीय (Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि फिर अपराधी तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
भारतीय कानूनी कोड नेविगेट करें: आईपीसी 366ए का अनावरणOffence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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