भारतीय दण्ड संहिता (IPC), 1860 की धारा 340 गैरकानूनी तरीके से किसी व्यक्ति को रोकने के संबंध में जानकारी प्प्रदान करती है। इस धारा का मुख्य उद्देश्य समाज में नागरिकों को सुरक्षित वातावरण प्रदान करना हैं। यह धारा समाज में न्याय और विशेषता की भावना को मजबूत करने का प्रयास करती है, ताकि लोग अपराधों से डर कर उनसे बच सकें।
भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 340 के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति सदोष परिरोध करता है, कि उस व्यक्ति को निश्चित सीमा से परे जाने से निवारित कर दिया जाए, तो वह भारतीय कानून व्यवस्था के अनुसार दोषी पाया जाता है।
इसमें गलत तरीके से अवरोध या उसे रोकने की कोशिश करता है, वह उस व्यक्ति को गलत तरीके से प्रतिबंधित करना आदि शामिल है। इसे कुछ उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है। जैसे:
(क) "अ" एक कमरे के ताला लगाकर उसके अंदर "ब" को बंद कर देता है, तो इस तरह "ब" किसी भी स्तिथि में चाहकर भी उस कमरे से बाहर नहीं जा पाएगा। इस स्तिथि में यह कहा जा सकता है कि "अ" ने "ब" को गलत तरीके से प्रतिबंधित किया है।
(ख) यदि “क” एक भवन के अंदर "ख" को बैठाकर भवन के द्वारों पर बन्दूकधारी व्यक्तियों को बैठा देता है और उनसे कह देता है कि यदि “ख” भवन के बाहर जाने का प्रयत्न करेगा, तो उसे गोली मार दें। तो इसे भी गलत तरीके से प्रतिबंधित करना कहा जाएगा।
आईपीसी की धारा 340 के अंतर्गत बताए गए अपराध की सजा का प्रावधान धारा 342 में देखने को मिलता है। इसके अनुसार यदि कोई किसी व्यक्ति को गलत तरीके से रोकता है या रोकने का प्रयास करता है तो ऐसी स्थिति में अपराध सिद्ध हो जाने पर अपराधी के लिए एक अवधी की सजा जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है का कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना या फिर दोनों प्रकार की सजा का प्रावधान है।
अपराध |
सदोष परिरोध करना |
दण्ड |
अधिकतम एक वर्ष का कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय |
जमानत |
जमानतीय |
विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट के द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 340 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच कर सकती है और अपराधी को पकड़ने के लिए भी वारंट की आवश्यकता नहीं होती है। धारा 340 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में पीड़ित की सहमति से समझौता किया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 340 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध जमानतीय (Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 340 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
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Bail | |
Triable By | |