भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 339 भारतीय कानूनी प्रणाली में एक महत्वपूर्ण धारा है, जो सदोष अवरोध के बारे में संज्ञान लेती है। भारतीय कानून में सदोष अवरोध भी एक गंभीर अपराध माना जाता है और इसके लिए कठोर दंड निर्धारित किये गए है। यह धारा किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकारों को सुरक्षित रखती है। इस तरह के अपराधों के बारे में जानने और उनसे बचने के लिए लोगों इस धारा के बारे में अवश्य जागरूक होना चाहिए।
भारतीय दंड संहिता की धारा 339 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को स्वेच्छया से किसी ऐसी बाधा में डालता है जो कि उस व्यक्ति को उस दिशा में जाने को या किसी ऐसे कार्य को करने से रोकता है, जिसे उसे करने का अधिकार है, तो ऐसा कार्य करना सदोष अवरोध करना कहलाता है।
उदाहरण के लिए "अ" को किसी मार्ग में जाने का अधिकार है और "ब" यह जानते हुए कि उसे ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है फिर भी उसके मार्ग में बाधा डालता है तो इसे "ब" द्वारा "अ" का सदोष अवरोध कहा जाएगा।
धारा 339 के अंतर्गत सदोष अवरोध के प्रमुख तत्व निम्नलिखित है।
धारा 339 के अंतर्गत कुछ अपवाद भी है, जो बताते है कि अवरोध किन-किन स्थितियों में सदोष अवरोध नहीं माना जाएगा। इस धारा के अंतर्गत वह अपराध नहीं माना जाएगा, जब भूमि या जल के ऐसे निजी मार्ग में बाधा डाले और किसी व्यक्ति को सद्भावपूर्वक विश्वास है कि वहां बाधा डालने का उसे विधिपूर्ण अधिकार है।
अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। इस तरह के मामलों में अदालत की अनुमति से और पीड़ित व्यक्ति की सहमति से समझौता किया जा सकता है।
जानें आईपीसी 287: अपने अधिकारों को जानेंOffence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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