भारतीय दण्ड संहिता (IPC), 1860 की धारा 311 लोक सेवक की लापरवाहियों के बारे में संज्ञान लेती है। यह धारा समाज में न्याय और सजागता की भावना को बढ़ावा देती है। यह धारा लोक सेवकों को सही तरीके से अपनी जिम्मेदारी व कर्तव्य का सच्चाई और ईमानदारी से निर्वहन करने के लिए प्रेरित करती है ताकि समाज को सच्ची सेवा मिल सके और विकास में रुकावटें ना आए और ऐसा न करने पर उसे दंड का सामना करना पड़ सकता है। इस प्रकार के अपराधों से बचने के लिए इस धारा के बारे में जानकारी होना आवश्यक है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 311 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति ठगी करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है, तो ऐसा कार्य करने वाला व्यक्ति भी भारतीय कानून के अनुसार अपराधी माना जाएगा।
यहाँ ठगी से आशय किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा अनैतिक तरीके से किसी अन्य व्यक्ति की धन या सम्पत्ति लूटने से है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 311 के अंतर्गत ठगी करने जैसे अपराधों के लिए आजीवन कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में का जुर्माने की सजाओं का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
ठगी करना |
दण्ड |
आजीवन कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में का जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं) |
जमानत |
जमानतीय |
विचारणीय |
सत्र न्यायालय के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 311 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 311 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस प्रकार के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 311 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-जमानतीय (Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 311 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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