भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 268 एक महत्वपूर्ण धारा है, जो समाज की सुरक्षा और व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है। धारा 268 'सार्वजनिक उपद्रव' को परिभाषित करती है, हालाँकि इस धारा में इस तरह के अपराधों के लिए दंड का प्रावधान देखने को नहीं मिलता। यह धारा सार्वजनिक स्थानों पर होने वाले उपद्रव को शामिल करती है, जिसमें जनता को उत्पीड़ित किया जाता है या उनको नुकसान पहुंचाया जाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 268 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक उपद्रव का अपराध करता है, अर्थात् कोई ऐसा कार्य करता है या किसी ऐसे अवैध लोप का दोषी हो, जिससे लोग या आसपास में रहने वाले जनसाधारण को अथवा आसपास की सम्पत्ति पर अधिभोग रखने वाले लोगों को किसी प्रकार की क्षति, संकट या क्षोभ कारित हो, तो ऐसा कार्य करने वाला व्यक्ति को भी भारतीय कानून के अंतर्गत अपराधी माना जाता है।
जैसा कि हमने बताया भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 268 में सार्वजनिक उपद्रव के लिए सजा का कोई प्रावधान देखने को नहीं मिलता, लेकिन 290 सार्वजनिक उपद्रव के लिए सजा की बात करती है। धारा 290 के अनुसार सार्वजनिक उपद्रव करने के अपराध में आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
सार्वजनिक उपद्रव करना |
दण्ड |
आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय |
जमानत |
जमानतीय |
विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 268 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 268 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 268 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध जमानतीय (Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 268 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
आईपीसी 171एफ के माध्यम से सशक्तिकरणOffence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
Cognizance | |
Bail | |
Triable By | |