भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 191 एक महत्वपूर्ण धारा है, जो देने की स्थितियों को परिभाषित करती है। झूठा साक्ष्य देना एक गंभीर अपराध है जो समाज में न्याय की भ्रष्टाचार और अव्यवस्था को बढ़ावा देता है। यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायिक प्रक्रिया में झूठे साक्ष्य देता है, तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। झूठे साक्ष्य देने वाले को कठोर दंड और सजा का सामना करना पड़ सकता है। यह धारा न्यायिक प्रक्रिया के विश्वास को बचाने और न्याय को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाई गई है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 191 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति लोक सेवक होने के नाते शपथ द्वारा या विधि के किसी अभिव्यक्त उपबंध द्वारा सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होने की दशा में, या फिर किसी विषय पर घोषणा करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध होते हुए, ऐसा कोई कार्य करेगा, जो झूठा है, और फिर जिसके मिथ्या होने के ज्ञान या विश्वास हो अथवा जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, तो ऐसा कथन पेश करना भी, झूठा साक्ष्य देना कहलाता है।
स्पष्टीकरण 1 - यदि कहा गया कथन चाहे वह मौखिक हो, या अन्यथा किया गया हो, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 37 के अंतर्गत आता है।
स्पष्टीकरण 2 - सम्बन्धित कथन को अनुप्रमाणित करने वाले व्यक्ति के अपने विश्वास के बारे में इस धारा के अर्थ के अंतर्गत आता हो और कोई व्यक्ति उस बात को कहते समय पूरा विश्वास जताता है, जिस बात का उसे विश्वास नहीं है, तथा जिस बात को वह नहीं जानता है, उस बात को जानने का विश्वास दिखाता हो, तो वह मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी कहलायेगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 191 केवल झूठे साक्ष्य देने की स्थितियों को परिभाषित करती है। इसमें इस प्रकार के अपराधों हेतु दण्ड का उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन धारा 193 के तहत, झूठा साक्ष्य देने जैसे अपराधों के लिए सात साल का कारावास और आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने की सजाओं का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
झूठा साक्ष्य देना |
दण्ड |
7 साल का कारावास और आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों |
अपराध श्रेणी |
गैर-संज्ञेय |
जमानत |
जमानतीय |
विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के न्यायधीश के समक्ष |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 191 के अंतर्गत किया गया अपराध एक गैर-संज्ञेय/असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के भी जाँच शुरू नहीं कर सकती है यही नहीं ऐसे मामलों में किसी अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए भी वारंट की आवश्यकता होती है। लेकिन आंध्र प्रदेश राज्य में इस अपराध को संज्ञेय अपराधों में शामिल किया जाता है। धारा 191 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल किसी भी श्रेणी के न्यायधीश के समक्ष पेश किया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 191 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध जमानतीय (Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 191 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
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Bail | |
Triable By | |