भारतीय कानूनी प्रणाली में विभिन्न धाराओं के माध्यम से उपद्रव को निवारण करने के लिए कई क़ानूनी प्रावधान हैं। इनमें से एक ऐसी महत्वपूर्ण धारा है, भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 156, जो स्वामी या अधिवासी के हितों के लिए किये गए उपद्रव के निवारण हेतु अभिकर्ता द्वारा क़ानूनी साधनों का उपयोग न करने पर प्रावधान करती है। इससे न केवल अभिकर्ता को जिम्मेदारी का एहसास होता है, बल्कि समाज में क़ानून के प्रति भरोसा भी बढ़ता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 156 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति या समूह द्वारा या उसकी ओर से जब किसी ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए उपद्रव किया जाए, जो किसी भूमि के विषय में हो या भूमि के स्वामी या किसी अधिवासी के हित में हो या जो ऐसी भूमि में या उपद्रव को पैदा करने वाले किसी विवादग्रस्त विषय में कोई हित रखने का दावा करता हो या उससे कोई फायदा स्वीकार या प्राप्त करने वाले व्यक्ति के अभिकर्ता या प्रबंधक जो इस बात का विश्वास रखता हो कि ऐसा उपद्रव होने या किये जाने की संभावना है या जिस ग़ैरक़ानूनी जनसमूह द्वारा ऐसा उपद्रव किया जाए, उस जनसमूह का होना सम्भाव्य होने की दशा में यदि कोई अभिकर्ता अपनी क्षमता और शक्ति अनुसार सब क़ानूनी साधनों का उपयोग कर उस ग़ैरक़ानूनी जनसमूह को बिखरने या उपद्रव को दबाने का निवारण नहीं करता, तो ऐसा कार्य करने वाला व्यक्ति भी भारतीय कानून के अनुसार अपराधी माना जाएगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 156 के अंतर्गत, स्वामी या अधिवासी के फायदे के लिए किये गए उपद्रव के निवारण हेतु अभिकर्ता द्वारा क़ानूनी साधनों का उपयोग न करने जैसे अपराधों के लिए आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
स्वामी या अधिवासी के फायदे के लिए किये गए उपद्रव के निवारण हेतु अभिकर्ता द्वारा क़ानूनी साधनों का उपयोग न करना। |
दण्ड |
जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
गैर-संज्ञेय |
जमानत |
जमानतीय |
विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के न्यायधीश के समक्ष |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 156 के अंतर्गत किया गया अपराध एक गैर-संज्ञेय/असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के भी जाँच शुरू नहीं कर सकती है यही नहीं ऐसे मामलों में किसी अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए भी वारंट की आवश्यकता होती है। धारा 156 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल किसी भी श्रेणी के न्यायधीश के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस प्रकार के मामलों में किसी भी प्रकार का समझौता करना सम्भव नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 156 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध जमानतीय (Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 156 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
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Triable By | |