भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 108 दुष्प्रेरक को परिभाषित करती है। दुष्प्रेरक एक ऐसा शब्द है जो हमें यह समझाता है कि कैसे कोई व्यक्ति दूसरों को नकारात्मक दिशा में प्रेरित कर सकता है। यह एक महत्वपूर्ण विचार है क्योंकि इसके माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि हमारे समाज में किस प्रकार की नकारात्मक प्रवृत्तियां फैल सकती हैं और उन्हें रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। दुष्प्रेरकता एक गंभीर मुद्दा है जिसे हमें पहचानने और उससे निपटने की जरूरत है। सही जानकारी, शिक्षा, और जागरूकता के माध्यम से हम दुष्प्रेरकता को रोक सकते हैं और एक स्वस्थ, संयुक्त, और प्रगतिशील समाज का निर्माण कर सकते हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 108 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है या ऐसे किसी कार्य को करने के लिए किसी व्यक्ति को दुष्प्रेरित करता है, जिस दुष्प्रेरण के कारण किसी अपराध का कारित होना सम्भव हो और यदि किया गया कार्य अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ व्यक्ति द्वारा दुष्प्रेरण के उद्देश्य से जानबूकर या पुरे ज्ञान से किया गया हो, तो उसे भारतीय कानून के अंतर्गत दुष्प्रेरक कहा जाता है।
स्पष्टीकरण- 1
दुष्प्रेरण का अपराध करने के लिए यह आवश्यक नहीं होता है कि दुष्प्रेरित कार्य किया ही जाए या अपराध गठित करने के लिए अपेक्षित प्रभाव कारित हो।
स्पष्टीकरण- 2
किसी भी कार्य के अवैध लोप द्वारा किया गया दुष्प्रेरण अपराध की कोटि में शामिल होगा, चाहे दुष्प्रेरक उस कार्य को करने के लिए स्वयं आबद्ध न हो।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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