भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 103 संपत्ति की निजी सुरक्षा के अधिकार को संरक्षित करने के लिए बनाई गई है। इसमें विविध तरीकों से निजी संपत्ति की हिफाजत करने का अधिकार दिया गया है। धारा 103 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए अपारदर्शी अदालत द्वारा स्वीकृत किए गए कुछ तरीके अपनाता है, तो उसे किसी भी दोष में दोषी ठहराया जा सकता है। इसमें व्यक्ति को अपनी संपत्ति के साथ किसी भी प्रकार की अत्याचार, उत्पीड़न, या धार्मिक आक्रमण का सामना करने का अधिकार होता है। धारा 103 का अनुपालन करने से समाज में विश्वास का बढ़ावा करती है। यह लोगों को आत्मविश्वास देती है कि उनकी संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी देती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 103 के अनुसार, धारा 99 में वर्णित निर्बन्धनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मॄत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार भारतीय दंड संहिता, 1860 17 करने तक का है, यदि किया गया अपराध लूट, रात्रौ गॄह-भेदन, अग्नि द्वारा रिष्टि (जो किसी ऐसे निर्माण, तंबू या जलयान को की गई है, जो मानव आवास के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है), अथवा चोरी, रिष्टि या गॄह-अतिचार, (जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्ति रूप से यह आशंका कारित हो) ऐसे अपराध जिसके किए जाने के, या किए जाने के प्रयत्न के कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मॄत्यु या घोर उपहति होगा, तो ऐसी स्थिति में हमले से बचने के लिए हमलावर पर अपने बचाव में हमला करना प्रतिरक्षा के अधिकार के अंतर्गत शामिल किया जाएगा।
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