भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 476 एक महत्वपूर्ण धारा है जो किसी व्यक्ति या संघ के दस्तावेजों को प्रमाणित करने या नकली चिह्नित सामग्री को उपयोग में लाने के लिए उपकरण या निशान की जालसाजी करने के सम्बन्ध में संज्ञान लेती है। ऐसे अपराधों के चलते समाज में धोखाधड़ी के अपराध बढ़ते हैं। यह धारा उन सभी अपराधों के लिए कठोर सजा का प्रावधान करती है, ताकि ऐसे जालसाजी के अपराधों को कम किया जा सके।
भारतीय दंड संहिता की धारा 476 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे पदार्थ या उसके उपादान में, किसी ऐसी अभिलक्षणा या चिह्न की, जिसे इस संहिता की धारा 467 में वर्णित दस्तावेजों से भिन्न 2 [किसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख] के अधिप्रमाणीकरण के प्रयोजन के लिए, उपयोग में लाया जाता हो, कूटकॄति करने का उद्देश्य रखते हुए उसकी जाली प्रतिलिपि बनाएगा कि वह ऐसी अभिलक्षणा या ऐसे चिह्न को, ऐसे पदार्थ पर उस समय कूटरचित की जा रही या उसके पश्चात् कूटरचित की जाने वाली किसी दस्तावेज को अधिप्रमाणीकॄत का आभास प्रदान करने के प्रयोजन से उपयोग में लाया जाएगा या जो ऐसे आशय से कोई ऐसा पदार्थ अपने कब्जे में रखेगा, जिस पर या जिसके उपादान में ऐसी अभिलक्षणा या ऐसे चिह्न की कूटकॄति बनाई गई हो, तो ऐसा कार्य करने वाला व्यक्ति भारतीय कानून के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 476 के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता की धारा 467 में वर्णित दस्तावेजों के अलावा अन्य दस्तावेजों को प्रमाणित करने या नकली चिह्नित सामग्री रखने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले उपकरण या निशान की जालसाजी करने जैसे अपराधों के लिए 7 साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
कूटरचना करना |
दण्ड |
भारतीय दंड संहिता की धारा 467 में वर्णित दस्तावेजों के अलावा अन्य दस्तावेजों को प्रमाणित करने या नकली चिह्नित सामग्री रखने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले उपकरण या निशान की जालसाजी करना |
अपराध श्रेणी |
गैर-संज्ञेय |
जमानत |
गैर-जमानतीय |
विचारणीय |
प्रथम श्रेणी के न्यायधीश के समक्ष |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 476 के अंतर्गत किया गया अपराध एक गैर-संज्ञेय/असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के भी जाँच शुरू नहीं कर सकती है यही नहीं ऐसे मामलों में किसी अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए भी वारंट की आवश्यकता होती है। धारा 476 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल प्रथम श्रेणी के न्यायधीश के समक्ष पेश किया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 476 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-जमानतीय (Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 476 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
Cognizance | |
Bail | |
Triable By | |