भारतीय दंड संहिता अधिनियम (IPC) 1860 के अंतर्गत, धारा 465 आईपीसी की एक महत्वपूर्ण धारा है जो छल करने को अपराध मानती है। इस धारा में धोखा देने वाले व्यक्ति के लिए दण्ड का प्रावधान किया गया है।
यह धारा उन लोगों के खिलाफ है जो धन, संपत्ति, या किसी अन्य प्रकार के लाभ के लिए झूठी या भ्रांतिपूर्ण आरोप लगाते हैं। इस धारा का मुख्य उद्देश्य समाज में होने वाले जालसाजी और धोखाधड़ी के अपराधों को कम करना है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 465 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के साथ जालसाजी/कूटरचना करना करता है अथवा ऐसा करने का प्रयास करता है, तो ऐसा करने वाले व्यक्ति को भी भारतीय कानून के अनुसार अपराधी माना जाएगा।
यदि किसी व्यक्ति ने जानबूझकर अथवा गलत इरादे से गलत जानकारी देकर किसी को गुमराह किया हो अथवा धोखा दिया हो तो वह दण्ड का पात्र होगा।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 465 के अंतर्गत पाए जाने वाले अपराधों के लिए भारतीय कानून प्रणाली में एक निश्चित सजा का प्रावधान है। IPC में जालसाजी या कूटरचना करने के अपराध की सजा के रूप में आजीवन कारावास अथवा दो वर्ष का कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों प्रकार की सजाओं का प्रावधान है।
अपराध |
जालसाजी/कूटरचना करना |
दण्ड |
2 वर्ष का कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों |
अपराध श्रेणी |
गैर-संज्ञेय |
जमानत |
जमानतीय |
विचारणीय |
प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 465 के अंतर्गत किया गया अपराध एक गैर-संज्ञेय अपराध है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना जाँच शुरू कर नहीं कर सकती है और अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए भी वारंट की आवश्यकता पड़ती है। धारा 465 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाता हैं।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 465 के अंतर्गत किए गए अपराधों को जमानतीय (Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाता है, यानि यदि कोई व्यक्ति ऐसे मामलों में गिरफ्तार किया जाता है, तो उस अपराधी तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
Cognizance | |
Bail | |
Triable By | |