भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 464 एक महत्वपूर्ण धारा है, जो मिथ्या दस्तावेज रचना के प्रति सजगता को सुनिश्चित करती है। इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति धोखाधड़ी के उद्देश्य से कोई भी दस्तावेज या कागजात बनाता है, तो ऐसे वह अपराधी माना जाता है। इस धारा में मिथ्या दस्तावेज रचना के अपराध की स्थितियों के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। धोखाधड़ी गंभीर अपराध माना जाता है क्योंकि इससे न केवल व्यक्ति के हक का हनन होता है, बल्कि इससे समाज के विश्वास को भी धोखा मिलता है और मिथ्या दस्तावेज रचना धोखाधड़ी का ही एक प्रकार है। लोगों को इसके बारे में जागरूक होना चाहिए ताकि वह इस तरह के अपराधों से बच सके। हालाँकि इस IPC की धारा 464 में इस तरह के अपराधों के लिए दण्ड का उल्लेख नहीं किया गया है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 464 के अनुसार 2[उस व्यक्ति के बारे में यह कहा जाता है कि वह व्यक्ति मिथ्या दस्तावेज या मिथ्या इलैक्ट्रानिक अभिलेख रचता है,-
पहला - जो बेईमानी से या कपटपूर्वक निम्नलिखित उद्देश्य से करे-
(क) किसी दस्तावेज को या दस्तावेज के भाग को रचित, मुद्रांकित, हस्ताक्षरित या निष्पादित करता है ;
(ख) किसी इलैक्ट्रानिक अभिलेख को या किसी इलैक्ट्रानिक अभिलेख के भाग को रचित या पारेषित करता है ;
(ग) किसी इलैक्ट्रानिक अभिलेख पर कोई अंकीय चिह्नक लगाता है ;
(घ) किसी दस्तावेज के निष्पादन का या ऐसे व्यक्ति या अंकीय चिह्नक की अधिप्रमाणिकता का द्योतन करने वाला कोई चिह्न लगाता है, ताकि यह विश्वास किया जा सके कि ऐसा दस्तावेज या दस्तावेज के भाग, इलैक्ट्रानिक अभिलेख या अंकीय चिह्नक की रचना, निष्पादन, मुद्रांकन, हस्ताक्षरण, पारेषण या लगाना ऐसे व्यक्ति द्वारा या ऐसे व्यक्ति के प्राधिकार द्वारा किया गया था, जिसके द्वारा या जिसके प्राधिकार द्वारा उसकी रचना, हस्ताक्षरण, मुद्रांकन या निष्पादन, लगाए जाने या पारेषित न होने की बात वह जानता है ; या
दूसरा - यदि कोई व्यक्ति किसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख के किसी तात्विक भाग में परिवर्तन करे, उसके द्वारा या ऐसे किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, चाहे वह व्यक्ति किये गए परिवर्तन के समय जीवित हो अथवा नहीं, उस दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख के रचित या निष्पादित किए जाने या अंकीय चिह्न लगाए जाने के पश्चात्, उसे रद्द करके या फिर किसी अन्य प्रकार से, विधिपूर्वक प्राधिकार के बिना, बेईमानी से या कपटपूर्वक करे ; अथवा
तीसरा - यदि किसी व्यक्ति द्वारा, यह जानते हुए भी कि वह व्यक्ति किसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख की विषयवस्तु को या उसके परिवर्तन के रूप को, उसकी विकॄतचित्त या मत्तता की हालत होने के कारण जान नहीं सकता था या उस प्रवंचना के कारण, जो उसके द्वारा ही की गई है, को जानता नहीं है, और उस दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख को बेईमानी से या कपटपूर्वक हस्ताक्षरित, निष्पादित, मुद्रांकित या परिवर्तित करे या किसी इलैक्ट्रानिक अभिलेख पर उसके अंकीय चिह्नक को अपने अंकीय चिह्नक में परिवर्तित करे।
स्पष्टीकरण 1 - किसी व्यक्ति द्वारा अपने नाम के हस्ताक्षर करना भी कूटरचना की उच्च कोटि में शामिल किया जाएगा।
स्पष्टीकरण 2 - कोई जाली दस्तावेज किसी कल्पित व्यक्ति के नाम से इस उद्देश्य से रचना कि उस पर यह विश्वास किया जा सके कि वह दस्तावेज वास्तविक व्यक्ति द्वारा ही रचा गया है या किसी मृत व्यक्ति के नाम से कोई दस्तावेज इस तरह से रचना कि उस पर यह विश्वास किया जा सके कि वह दस्तावेज उस व्यक्ति के जीवनकाल में रची गई थी, कूटरचना की कोटि में शामिल किया जाएगा।
स्पष्टीकरण 3 - इस धारा के अनुसार किए जाने वाले प्रयोजनों (इलेक्ट्रिक चिह्नक) के लिए अभिव्यक्ति का वही अर्थ होगा जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (घ) में समनुदेशित किया गया है।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
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Bail | |
Triable By | |