भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 463 कूटरचना को परिभाषित करती है। यह धारा स्पष्ट करती है कि किस स्थिति में किसी दस्तावेज के साथ धोखाधड़ी करना कूटरचना कहलाता है। हालाँकि इस धारा में कूटरचना के अपराधों के लिए सजा का प्रावधान देखने को नहीं मिलता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 463 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी जाली दस्तावेज या जाली इलैक्ट्रानिक अभिलेख अथवा दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख के किसी भाग कोट इस उद्देश्य से बनाता है कि वह लोक को या किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सके, या वह किसी दावे या हक में समर्थन प्राप्त कर सके, या फिर कोई व्यक्ति संपत्ति अलग कर सके या कोई अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा करे अथवा किसी भी प्रकार का कपट कर सके, तो ऐसा करना कूटरचना करना कहलाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 463 केवल कूटरचना को परिभाषित करती है। इस धारा में ऐसे अपराधों के लिए दंड का उल्लेख नहीं किया गया है। इस धारा के अंतर्गत किए गए अपराधों के दण्ड का उल्लेख धारा 465 में देखने को मिलता है। इस धारा में 465 के अंतर्गत कूटरचना करने वाले अपराधी के लिए अधिकतम 2 साल का कारावास और आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
कूटरचना करना |
दण्ड |
अधिकतम 2 साल का कारावास और आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय |
जमानत |
जमानतीय |
विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के न्यायधीश के समक्ष |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 463 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 463 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल किसी भी श्रेणी के न्यायधीश के समक्ष पेश किया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 463 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध जमानतीय (Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 463 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
Cognizance | |
Bail | |
Triable By | |