भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 के तहत, धारा 455 विशेष रूप से प्रच्छन्न रूप से गृहर-अतिचार या गृहर-भेदन करने के अपराध के संबंध में संज्ञान लेती है। इस धारा का उद्देश्य किसी व्यक्ति का उपहति, हमले, या सदोष अवरोध के उद्देश्य से प्रच्छन्न रूप से उसके घर या सम्पत्ति में प्रवेश करने जैसे अपराधों को रोकना है। यह एक गंभीर अपराध है, जो समाज में अशांति और असुरक्षा फैलाते हैं। भारतीय कानून में ऐसे अपराधियों के लिए दण्ड का प्रावधान किया गया है, ताकि समाज में इस प्रकार की हिंसा पर अधिक से अधिक नियंत्रण पाया जा सके।
भारतीय दंड संहिता की धारा 455 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति का उपहति करने, उस पर हमला करने या उस व्यक्ति का सदोष अवरोध करने की के उद्देश्य से या फिर उस व्यक्ति को ऐसा करने के भय में डालने के उद्देश्य से प्रच्छन्न गॄह-अतिचार या गॄह-भेदन करता है, तो ऐसा करने वाला व्यक्ति भारतीय कानून के तहत अपराधी माना जाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 455 के अंतर्गत, उपहति, हमले या सदोष अवरोध के उद्देश्य से प्रच्छन्न गॄह-अतिचार या गॄह-भेदन करने जैसे अपराधों के लिए 10 साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
उपहति, हमले या सदोष अवरोध के उद्देश्य से प्रच्छन्न गॄह-अतिचार या गॄह-भेदन करना |
दण्ड |
10 साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय |
जमानत |
गैर-जमानतीय |
विचारणीय |
प्रथम श्रेणी के न्यायधीश के समक्ष |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 455 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 455 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 455 के अंतर्गत किया गया अपराध एक गैर-जमानतीय (Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 455 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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