भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 के तहत, धारा 388 मॄत्यु या आजीवन कारावास, आदि से दंडनीय अपराध का अभियोग लगाने की धमकी देकर उद्दापन करने जैसे महत्वपूर्ण और गंभीर अपराधों के प्रति संज्ञान लेती है। धमकी देना एक गंभीर मुद्दा है, जिसे भारतीय कानून व्यवस्था ने गंभीरता से लिया है। धारा 388 उस व्यक्ति के ऊपर लगाई जाती है जो मृत्यु या आजीवन कारावास की दण्डनीय सजा के अभियोग में होता है। यह एक गंभीर अपराध है जिसमें अपराधी व्यक्ति के जीवन को खतरे में डाला जाता है। इसके अलावा, इसका अपराधी के मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ता है, जिससे उसकी आत्मविश्वास और स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 388 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को उसके स्वयं के विरुद्ध अभियोग लगाने के भय दिखाकर कोई ऐसा अपराध करता है या करवाने का प्रयत्न करता है, जो कि मॄत्यु से या आजीवन कारावास अथवा ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो या किसी ऐसे अपराध को करता है या करने का प्रयास करता है, जो इस संहिता की धारा 377 के अधीन दंडनीय है, तो ऐसा करने वाले अपराधी को धारा 388 के तहत दण्ड दिया जाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 388 के अंतर्गत, मॄत्यु या आजीवन कारावास, आदि से दंडनीय अपराध का अभियोग लगाने की धमकी देकर उद्दापन करने जैसे अपराधों के लिए दस वर्ष तक के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने की सजा का प्रावधान है, जबकि धारा 377 के अधीन दंडनीय अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
मॄत्यु या आजीवन कारावास, आदि से दंडनीय अपराध का अभियोग लगाने की धमकी देकर उद्दापन करना |
धारा 377 के अधीन दंडनीय अपराध |
दण्ड |
दस वर्ष तक के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
आजीवन कारावास |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय |
संज्ञेय |
जमानत |
गैर-जमानतीय |
गैर-जमानतीय |
विचारणीय |
प्रथम श्रेणी के न्यायधीश के समक्ष |
प्रथम श्रेणी के न्यायधीश के समक्ष |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 388 के अंतर्गत किए गए अपराध संज्ञेय अपराधों की श्रेणी में शामिल किये जाते हैं, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। ऐसे अपराधों के मामलों का ट्रायल प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 388 के अंतर्गत अपराध करने की आपराधिक साजिश करने वाले अपराध गैर-जमानतीय (Non-Baileble) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 388 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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