भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 38 आपराधिक कार्य में संपॄक्त व्यक्तियों की आपराधिक स्थिति को स्पष्ट करती है। धारा 38 ऐसे मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो उन व्यक्तियों को दोषी ठहराता है जो कि अपराधिक कार्यों में संलिप्त होते हैं और जो अपराधिक कार्यों की योजना बनाते हैं या उन्हें समर्थन प्रदान करते हैं। इसके अलावा, यह धारा उन लोगों को भी सम्मिलित करती है जो अपराधिक कार्यों में संलिप्त होते हैं और उन्हें छिपाने की कोशिश करते हैं। हालाँकि यह धारा केवल अपराध की स्थिति को स्पष्ट करती है, इसमें अपराधों के दण्ड के बारे में किसी प्रकार का उल्लेख नहीं किया गया है। यह धारा अपराधियों को डराने और नियंत्रित करने का काम करता है और समाज को सुरक्षित बनाए रखने में मदद करती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 38 के अनुसार, जहां दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी आपराधिक कार्य को एकसाथ करने में लगे हुए या सम्पॄक्त हैं, तो ऐसी स्थिति में वह उस कार्य के आधार पर विभिन्न अपराधों के दोषी होंगे।
उदाहरण - माना "अ" किन्ही ऐसी गम्भीर प्रकोपन परिस्थतियों के अधीन "क" पर आक्रमण करता है कि उसके द्वारा किया जाने वाला "क" का वध केवल एक प्रकार का आपराधिक मानववध है, जो हत्या की कोटि में शामिल नहीं किया जाता है। वहीं "ब" जो कि "क" से शत्रुता रखता है और किसी प्रकार के प्रकोपन के अधीन न होते हुए "क" की हत्या करने के इरादे से "क" का वध करने में "अ" की सहायता करता है, तो ऐसी स्थिति में "ब" हत्या का दोषी माना जाएगा, जबकि और "अ" केवल आपराधिक मानव वध का दोषी होगा। चाहें दोनों ही मॄत्यु कारित करने में लगे हुए हैं।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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