भारतीय दण्ड संहिता (IPC), 1860 की धारा 316 भी एक महत्वपूर्ण धारा है, जो गैर इरादतन उद्देश्य से किए गए किसी कार्य को अपराध मानती है, जिससे किसी अजन्मे शिशु की मृत्यु हो जाए।
इस धारा का उल्लेख भारतीय कानून में अजन्मे बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया गया है। यह धारा उन लोगों के खिलाफ होती है जो बच्चों की निगरानी में दोषी होते हैं और उनके साथ अनैतिक और गैर-जिम्मेदार व्यवहार करते हैं।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 316 के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसा कार्य करता है, जो किसी अजन्मे बच्चे की मौत का कारण बन जाए और यह ऐसा कार्य गैर-इरादतन हत्या के उद्देश्य से किया जाए, तो ऐसा कार्य करने वाला व्यक्ति भी भारतीय कानून के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 316 के अंतर्गत, गैर-इरादतन हत्या की श्रेणी में आने वाले अपराध के अनुसार कोई ऐसा काम करना जो किसी सजीव अजन्मे शिशु की मृत्यु का कारण बन जाए तो इस अपराध के लिए 10 साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
अपराध |
गैर-इरादतन हत्या की श्रेणी में आने वाला अपराध के अनुसार कोई ऐसा काम करना जो किसी सजीव अजन्मे शिशु की मॄत्यु का कारण बन जाए। |
दण्ड |
10 साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय (समझौता करने योग्य नहीं) |
जमानतीय |
गैर-जमानतीय |
विचारणीय |
सत्र न्यायालय के द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 316 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच कर सकती है और अपराधी को पकड़ने के लिए भी वारंट की आवश्यकता नहीं होती है। धारा 316 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल सत्र न्यायालय के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 316 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-जमानतीय (Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 316 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
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Bail | |
Triable By | |