भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 212 एक महत्वपूर्ण धारा है, जो किसी अपराधी को शरण देने के अपराध में संज्ञान लेती है। किसी अपराधी को कानूनी प्रक्रिया से बचाने के लिए शरण देना भी एक प्रकार का गंभीर अपराध माना जाता है। धारा 212 के अंतर्गत ऐसे करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 212 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए या विश्वास रखते हुए भी कि उस व्यक्ति ने कोई अपराध किया है, किसी व्यक्ति को आपराधिक दण्ड बचाने के उद्देश्य से शरण देगा, तो ऐसा कार्य करने वाला व्यक्ति को भी भारतीय कानून के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
धारा 212 का एक अपवाद भी है, इस धारा के अंतर्गत यदि अपराधी को शरण देने वाला व्यक्ति अपराधी का पति या पत्नी है, तो ऐसी दशा में यह धारा नहीं लगाई जाएगी।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 212 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति ऐसे अपराधी को शरण देता है, जिसे मॄत्यु से दण्ड दिया गया हो, तो उस व्यक्ति के लिए पांच साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना का प्रावधान है, जबकि आजीवन कारावास या दस साल के लिए कारावास से दण्डनीय अपराधी को शरण देने के अपराध में तीन साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने की सजा का प्रावधान है। वहीं अगर कोई व्यक्ति 1 साल या उससे अधिक के कारावास के साथ दंडनीय किन्तु 10 साल से कम समय के लिए दण्डित किसी व्यक्ति को छुपने के लिए शरण देता है, तो उसके लिए दण्ड के रूप में अपराध या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों का एक चौथाई सजा का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
मॄत्यु से दण्डनीय अपराधी को शरण देना |
आजीवन कारावास या 10 साल के लिए कारावास से दण्डनीय अपराधी को शरण देना |
1 साल या उससे अधिक के कारावास के साथ दंडनीय किन्तु 10 साल के लिए नहीं से दण्डनीय अपराधी को शरण देना |
दण्ड |
5 साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
3 साल के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
अपराध या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों का एक चौथाई |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय |
संज्ञेय |
संज्ञेय |
जमानत |
जमानतीय |
जमानतीय |
जमानतीय |
विचारणीय |
प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष |
प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष |
प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 212 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 212 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 212 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध जमानतीय (Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 212 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
आईपीसी 268 तक पहुंचें: कानूनी रूप से जागरूक रहेंOffence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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