भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 209 बेईमानी से न्यायालय में गलत दावा करने के बारे में संज्ञान लेती है। बेईमानी से न्यायालय में गलत दावा करना एक गंभीर अपराध है। यह धारा कानूनी सिद्धांतों की धारा है जो समाज की न्यायिक न्याय की रक्षा करने के लिए बनाई गई है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि कोई भी व्यक्ति अपने लाभ के लिए बेईमानी से न्यायालय में झूठा दावा न करें। 209 आईपीसी के तहत, अगर किसी व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ गलत दावा किया है और इसके लिए धोखाधड़ी का सहारा लिया है, तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 209 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का क्षोभ या क्षति कारित करने के उद्देश्य से कपटपूर्वक या बेईमानी से न्यायालय में कोई गलत दावा करता है, तो ऐसा कार्य करने वाला व्यक्ति भारतीय कानून के अनुसार अपराधी माना जाएगा।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 209 के अंतर्गत, बेईमानी से न्यायलय में गलत दावा करने जैसे अपराधों के लिए दण्ड के रूप में दो वर्ष के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है।
अपराध |
बेईमानी से न्यायलय में गलत दावा करना |
दण्ड |
दो वर्ष के कारावास के साथ आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
गैर-संज्ञेय/असंज्ञेय (समझौता करने योग्य नहीं) |
जमानत |
जमानतीय |
विचारणीय |
प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 209 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-संज्ञेय/असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू नहीं की जा सकती है और अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए भी वारंट की आवश्यकता होती है। धारा 209 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 209 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध जमानतीय (Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 209 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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Offence | |
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Punishment | |
Cognizance | |
Bail | |
Triable By | |