भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 106 घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को परिभाषित करती है, जब निर्दोष व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम हो। समाज में सुरक्षा और संरक्षण की भावना को बनाए रखने के लिए, कानून ने निर्दोष व्यक्तियों को प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार प्रदान किया है। इस अधिकार के तहत, जब कोई व्यक्ति स्वयं को या दूसरों को घातक हमले के खतरे में पाता है, तो उसे अपनी सुरक्षा के लिए उचित बल का उपयोग करने का अधिकार होता है। यह प्रतिरोध आत्मरक्षा के रूप में हो सकता है, जो कि उचित और न्यायसंगत होनी चाहिए। इसके अंतर्गत व्यक्ति अपने शारीरिक सामर्थ्य, बल, और उपलब्ध साधनों का उपयोग कर सकता है ताकि वह अपने आप को या दूसरों को सुरक्षित रख सके। इसे कानूनी नियमों के तहत इस्तेमाल किया जाना चाहिए, ताकि समाज में न्याय और सुरक्षा की भावना बनी रहे। यह अधिकार निर्दोष व्यक्ति की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा के लिए आवश्यक होता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 106 के अनुसार, यदि किसी हमले में मॄत्यु की आशंका हो और उस समय प्रतिरक्षक ऐसी स्थिति में हो कि वह हमलावर के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने में निर्दोष व्यक्ति की अपहानि की जोखिम के बिना वह अपने प्रतिरक्षा अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से न कर सकता हो, तो उसके प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार वह जोखिम उठाने तक कर सकता है।
स्पष्टीकरण
यदि किसी व्यक्ति पर एक बड़े समूह द्वारा आक्रमक आक्रमण किया जाता है, जो उसकी हत्या करने का उद्देश्य रखती हो। ऐसे में पीड़ित उस समूह पर किसी हथियार की सहायता के बिना अपने प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता है और उस समूह के लोगों की अपहानि करने की जोखिम उठाए बिना उन पर हथियार का उपयोग नहीं कर सकता है, तो यदि पीड़ित व्यक्ति ऐसी स्थिति में हथियार का उपयोग करने पर किसी की को अपहानि करे, तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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