भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 में विभिन्न प्रकार धाराओं का निर्माण किया गया है। इसमें आईपीसी धारा 454 एक महत्वपूर्ण धारा है जो उन व्यक्तियों के खिलाफ है जो अपने घर में हो रहे अपराधों में छिपकर गुनाह करते हैं। छिपकर गृह-अतिचार और गृह-भेदन करना भारतीय कानून में एक गंभीर अपराध माना जाता है और इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। सभी को इस तरह के अपराधों के बारे में जागरूक होना चाहिए, ताकि इस तरह के अपराधों को जल्द से जल्द खत्म किया जा सके।
भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 की धारा 454 के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति कारावास से दण्डनीय अपराध करने के लिए छिप कर गॄह-अतिचार करता है या फिर चोरी का अपराध करता है अथवा ऐसा करने का प्रयास करता है, तो वह व्यक्ति भारतीय कानून के अनुसार दोषी माना जाएगा। यहाँ छिप कर गृह अतिचार से आशय मनुष्य के निवास में प्रयोग आने वाले स्थान पर चोरी-छिपकर किए जाने वाले आपराधिक अतिचारों से है।
सरल भाषा में कहे तो यदि कोई व्यक्ति कारावास से बाहर निकलकर अपने पारिवारिक सदस्यों के प्रति अत्यंत दुर्व्यवहार करता है और यह अपराध छिपाकर करता है, तो उसे इस धारा के तहत सजा हो सकती है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 454 के अंतर्गत किए गए कारावास से दण्डनीय अपराध को करने के लिए छिप कर गॄह-अतिचार और यदि अपराध चोरी का है, तो इसके लिए भारतीय कानून प्रणाली में एक निश्चित सजा का प्रावधान है। IPC में कारावास से दण्डनीय अपराध को करने के लिए छिप कर गॄह-अतिचार करने के अपराधों के लिए 3 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना तथा चोरी के अपराध में 10 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माने का प्रावधान है।
अपराध |
कारावास से दण्डनीय अपराध करने के लिए छिप कर गॄह-अतिचार या गॄह-भेदन करना |
चोरी के अपराध में |
दंड |
3 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना |
10 साल के कारावास के साथ आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं) |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं) |
जमानत |
गैर-जमानतीय |
गैर-जमानतीय |
विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 454 के अंतर्गत किए गए अभी अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 454 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 454 के अंतर्गत किए गए सभी अपराधों को गैर-जमानतीय (Non-Bailable) की श्रेणी में शामिल किया जाता हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 454 में इस तरह के मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा।
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