भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 305 में नाबालिग व्यक्तियों के खिलाफ आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण के मामलों में प्रावधान करती है। इस तरह के अपराध गंभीर श्रेणी के अपराधों में शामिल किये जाते हैं और इन अपराधों के लिए इस धारा में कठोर सजा का उल्लेख किया गया है। यह धारा नाबालिग और मानसिक रूप से असमर्थ व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह धारा सामाजिक न्याय और मानवाधिकार की रक्षा करने का भी कार्य करती है। एक समाज में, हर व्यक्ति को समान अधिकार और सुरक्षा का अधिकार होता है, और यह धारा इस सिद्धांत को बचाव करने का कार्य करती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 305 के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति किसी भी नाबालिग (जिसकी आयु 18 वर्ष से कम हो) को उन्मत्त, भ्रांतचित्त, मूर्ख व्यक्ति, या कोई नशे की अवस्था में नाबालिग व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए दुष्प्रेरित करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है, तो ऐसे व्यक्ति को भारतीय कानून में अपराधी माना जाता है।
सरल शब्दों में कहे तो किसी भी पागल, बेवकूफ या बेसुध व्यक्ति या किसी प्रकार के नशे में चूर नाबालिग व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाना अपराध माना जाता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 305 के अंतर्गत, किसी भी नाबालिग व्यक्ति को जो मानसिक रूप से पीड़ित हो को आत्महत्या करने के लिए उकसाने जैसे अपराधों के लिए भारतीय कानून प्रणाली में एक निश्चित सजा का प्रावधान है। IPC में इस तरह के अपराधों के लिए मौत या आजीवन कारावास या दस वर्ष के कारावास या आर्थिक दंड के रूप में जुर्माने की सजाओं का प्रावधान है।
अपराध |
उन्मत्त, भ्रांतचित्त, मूर्ख व्यक्ति, या कोई नशे की अवस्था में नाबालिग व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए दुष्प्रेरित करना। |
दंड |
मौत या आजीवन कारावास या दस वर्ष के कारावास या आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं) |
जमानत |
गैर-जमानतीय |
विचारणीय |
सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 305 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 305 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल सत्र न्यायालय के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 305 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-जमानतीय (Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 305 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा।
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