भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 116 के अंतर्गत, कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए दुष्प्रेरण के सम्बन्ध में विभिन्न दशाओं के बारे में उल्लेख किया गया है। इस धारा का मुख्य उद्देश्य यह है कि किसी को बिना किसी कानूनी कारण के उकसाने और उन्हें अपराध करने के लिए प्रेरित करने के सम्बन्ध में प्रतिबंध लगाना है। इसमें अपराधिक व्यक्ति के लिए कारावास की सजा का प्रावधान भी है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों का समर्थन करता है जो समाज में सामंजस्य और न्याय की भावना को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 116 के अंतर्गत, यदि कोई कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण करता है, तो वह व्यक्ति भी भारतीय कानून के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा। इसमें दो प्रकार की स्तिथियों का उल्लेख किया गया है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 116 के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को अपराध के लिए उकसाए जो कि कारावास से दंडनीय और उसके उकसाने के परिणामस्वरूप अपराध नहीं किया जाता है, तो ऐसी दशा में उकसाने वाले अपराधी के लिए दीर्घतम अवधि की एक चौथाई अवधि के लिए कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों सजाओं का प्रावधान है। जबकि यदि उकसाने वाला या जिस व्यक्ति को उकसाया जाता है तो वह लोक सेवक हो, जिसका कर्तव्य अपराध को रोकना है, तो ऐसे व्यक्ति के लिए दीर्घतम अवधि की आधी अवधि के लिए कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों प्रकार की सजाओं का प्रावधान है।
अपराध |
किसी अपराध को उकसाना, कारावास से दंडनीय, यदि उकसाने के परिणामस्वरूप अपराध नहीं किया जाता है |
यदि उकसाने वाला या व्यक्ति को उकसाया जाता है तो वह लोक सेवक हो जिसका कर्तव्य अपराध को रोकना है |
दंड |
दीर्घतम अवधि की एक चौथाई अवधि के लिए कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों। |
दीर्घतम अवधि की आधी अवधि के लिए कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों। |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं) |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं) |
जमानत |
किये गए अपराध के अनुसार |
किये गए अपराध के अनुसार |
विचारणीय |
उस अदालत के समक्ष जिसमे किया गया अपराध पेश करने योग्य है |
उस अदालत के समक्ष जिसमे किया गया अपराध पेश करने योग्य है |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 116 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। धारा 116 के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों का ट्रायल सत्र न्यायालय के समक्ष पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में समझौता करना सम्भव नहीं है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 116 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-जमानतीय |
(Non-Bailable) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 116 के किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा।
Offence | Punishment | Cognizance | Bail | Triable By |
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