Date : 16 Jan, 2024
Post By एडवोकेट जश डलिया
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 279, 337 और 338 गंभीर अपराधों से जुड़ी हुई है। ऐसे मामले जिनमें किसी की जान को खतरा हो या उसे गंभीर रूप से चोट पहुंचे तो वह इन धाराओं के अंतर्गत शामिल किए जाते हैं, हालाँकि इसके कारण विभिन्न होते हैं। इन धाराओं का मुख्य उद्देश्य समाज के लोगों को सुरक्षित रखना है। इन तीनों ही धाराओं के लिए अलग-अलग प्रकार की सजाओं का प्रावधान है, लेकिन इससे पहले कि इन धाराओं की सजा के बारे में जाने आइये जानते हैं, इन धाराओं के अंतर्गत किन अपराधों के मामले दर्ज किए जाते हैं।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 279 के अनुसार, सार्वजनिक मार्ग पर जल्दबाजी में, गलत तरीके और लापरवाही से वाहन चलाने के मामले शामिल किए जाते हैं, जिससे कोई मानव जीवन संकट में आ जाए अथवा किसी व्यक्ति को गंभीर रूप से चोट पहुंचे।
उतावलेपन या उपेक्षा पूर्वक कोई ऐसा कार्य करना, जिससे मानव जीवन या किसी की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा हो अथवा चोट पहुचें, तो इस तरह के मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 337 के अंतर्गत आते हैं।
वहीँ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 338 के अंतर्गत, किसी व्यक्ति द्वारा उतावलेपन में या अपनी इच्छापूर्वक किए गए कार्य, जिससे किसी व्यक्ति के जीवन या उसकी व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा पहुँचता हो अथवा किसी प्रकार की गंभीर चोट पहुँचाती हो, ऐसे मामलों को दर्ज किया जाता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 279 और 337 के अंतर्गत 6 महीने का कारावास या आर्थिक दंड के रूप में एक हजार रुपए का जुर्माना अथवा दोनों सजाओं का प्रावधान है, जबकि धारा 338 के अंतर्गत 2 वर्ष के कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने अथवा दोनों का प्रावधान है।
धारा |
IPC 279 |
IPC 337 |
IPC 338 |
अपराध |
सार्वजनिक रास्ते पर लापरवाही से वाहन चलाना, जिससे मानव जीवन संकट में आ जाए |
ऐसा कार्य करना जिससे मानव जीवन या किसी की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा हो |
मानव जीवन या किसी की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा पहुँचाना अथवा गंभीर चोट पहुँचाना |
दंड |
6 महीने का कारावास या आर्थिक दंड के रूप में एक हजार रुपए का जुर्माना अथवा दोनों |
6 महीने का कारावास या आर्थिक दंड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों |
2 वर्ष का कारावास या आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माना अथवा दोनों |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं) |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य) |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य) |
जमानत |
जमानतीय |
जमानतीय |
जमानतीय |
विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 279, 337 और 338 के अंतर्गत आने वाले सभी अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते है, यानि जिस भी व्यक्ति को इसके बारे में पता हो, वह व्यक्ति पुलिस को इसके बारे में सूचना दे सकता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति के बिना भी जाँच शुरू कर सकती है और बिना वारंट के अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। तीनों ही धाराओं के अंतर्गत दर्ज किए गए मामलों में किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समक्ष ट्रायल किया जा सकता है। इसमें से धारा 279 के मामलों में समझौता किया जा सकता है, लेकिन अन्य दो धाराओं में किसी प्रकार का समझौता करना सम्भव नहीं है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 279, 337 और 338 के अंतर्गत आने वाले सभी अपराध जमानतीय (Baileble) अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं, यानि अगर कोई व्यक्ति इन धाराओं के अंतर्गत किसी मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो वह तुरंत जमानत पर बाहर आ सकता है।