Date : 02 Jan, 2024
Post By स्पर्श गोयल
कानून के अनुसार भारतीय दण्ड संहिता (IPC) में, धारा 323 एक महत्त्वपूर्ण धारा है जो जख्मी करने पर दण्डनीय कार्यों को व्यवस्थित करती है। यह धारा भारतीय समाज में न्यायपूर्णता और सदाचार की भावना को मजबूत करती है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समाज में न्याय की एक प्रक्रिया को दर्शाती है जो हर व्यक्ति को समान अधिकारों का हकदार बनाती है।
धारा 323 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को स्वेच्छा से चोट या किसी प्रकार की हानि पहुँचाता है, तो अपराधी के खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सकती है और व्यवस्थापकीय अदालतें उस पर कार्रवाई कर सकती है। IPC की धारा 323 के तहत अपराध सिद्ध करने हेतु चोट की रिपोर्ट पेश करना अनिवार्य नहीं है।
यहाँ पर चोट से तात्पर्य शारीरिक दर्द व अन्य शारीरिक नुकसान जिनमें मामूली चोटें जैसे हल्की चोट या खरोंच आदि शामिल है और हानि से तात्पर्य चोट पहुँचाने, उपेक्षा करने, अनादर करने, या किसी अन्य तरीके से असली या आर्थिक नुकसान पहुँचाने से है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के अंतर्गत (धारा 334 में दिए गए मामलों को छोड़कर) यदि कोई व्यक्ति अपराधी पाया जाता है, तो अपराधी को एक निश्चित अवधि के लिए कारावास जो कि एक वर्ष की अवधि तक बढ़ाया जा सकता है या एक हजार रुपए तक का जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है।
अपराध |
स्वेच्छा से किसी को चोट या हानि पहुँचाना |
दंड |
अधिकतम 1 वर्ष का कारावास, या जुर्माना या दोनों। |
अपराध श्रेणी |
संज्ञेय अपराध (समझौता करने योग्य नहीं) |
जमानत |
गैर-जमानतीय |
विचारणीय |
किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के अंतर्गत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है। इस प्रकार के अपराध किसी भी श्रेणी वाले मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय होते हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 385 के अंतर्गत किए गए सभी अपराध गैर-जमानतीय (Non-Baileble) अपराध की श्रेणी में आते है, यानि अगर कोई व्यक्ति धारा 323 के अधीन अपराधी माना जाता है, तो गिरफ्तार किए जाने पर अपराधी को जमानत नही मिल पाएगी।
रिपोर्ट दर्ज- IPC की धारा 323 के तहत किसी भी प्रकार के मामले में मुकदमे की प्रक्रिया में पहला कदम प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराना होता है।
जांच- FIR दर्ज करने के बाद जांच अधिकारी द्वारा मामले की जांच की जाती है। इसमें दोनों पक्षों का लिखित बयान दर्ज करना, साक्ष्य एकत्र करना, परिस्थितियों की जांच करना जैसे महत्वपूर्ण कदम शामिल है।
चार्ज- अधिकारियों द्वारा की गई जांच के आधार पर पुलिस द्वारा एक चार्ज शीट तैयार की जाती है और फिर मजिस्ट्रेट द्वारा सभी तथ्यों पर विचार कर मुकदमा चलाया जाता है।
जुर्म कबूलने का अवसर- मुकदमें के समय न्यायाधीश द्वारा सभी स्तिथियों पर नजर रखते हुए आरोपों के निर्धारण किया जाता है और आरोपी को अपने विवेक द्वारा दोषी करार दे सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान आरोपी को जुर्म कबूलने का अवसर भी प्रदान किया जाता है।
अभियोजन साक्ष्य/मुख्य रूप से परीक्षा- अभियोजन साक्ष्य जिसे कि सरल भाषा में मुख्य रूप से परीक्षा के नाम से भी जाना जाता है। यदि आरोपी अपना जुर्म नहीं कबूलता है तो इस प्रक्रिया में वह अपने पक्ष में दलील पेश कर सकता है। वही दूसरे पक्ष को अपराध साबित करने हेतु सबूत पेश करने होते हैं।
निर्णय- सभी दलीलों और प्रमाणों को मध्य नजर रखते हुए न्यायधीश द्वारा फैसला सुनाया जाता है। इस फैसले में यदि आरोपी दोषी पाया जाता है, तो उसे सजा सुनाई जाती है और यदि आरोपी को बरी कर दिया जाता है, तो दूसरे पक्ष को अदालत के आदेश के खिलाफ अपील करने का समय भी दिया जाता है।